Thursday, September 16, 2010

मैं,मेरी श्रीमतीजी और.............भाग-2(व्यंग्य)

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सोचते सोचते मैं "ससुर" शब्द का लैंगिक विश्लेषण करने लगा. यह शब्द पुलिंग होता है और आजीवन पुलिंग ही बना रहता है यदि और केवल यदि दामाद शब्द को स्त्रीलिंग शब्द की भांति अर्थ दे.कभी-कभी पुलिंग से स्त्रीलिंग शब्द बनाने पर शब्द एक दूसरे के विपरीतार्थक भी हो जाते है.....मेरे मामले मे यह बिल्कुल सही बैठता है.जहां ससुरजी असुर की तरह पेश आते हैं वहीं मेरी सासू मां साक्षात देवी हैं यदि नागिन बनकर मेरी श्रीमतीजी के कानों में फ़ूंक न मारा करें तो.

मैं यह सब सोच ही रहा था.तभी अचानक श्रीमतीजी आकर बोली----"लगता है मेरे पापा के आने से तुम खुश नहीं हुए...". मैंने अपने भाव पर नियंत्रण करते हुए कहा---
" ऐसी बात नहीं है. मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं है. वैसे तुम्हारे पापा किस वक्त आ टपके..?".वह गुस्सा गयी---
"ऐसे क्यों बोल रहे हो जी ?".भाव को कंट्रोल करने के चक्कर में मैं भाषा पर कंट्रोल ही नहीं रख पाया था.मैं पूरा ध्यान भाषा पर फ़ोकस करते हुए कहा...."प्रिये...तुम्हारे परम पूज्य पिताश्री किस सुकाल में पधारे थे ?"
उसने कहा--"तीन घंटे हो गये....". "तीन घंटे...?"---मेरे जवाब प्रश्न कम विस्मयादिबोधक थे.----"तीन घंटे में तो तुम उन्हें घर के इतिहास से लेकर मनोविज्ञान तक बता दिया हिगा..?"
"हां, मैंने तुम्हारे ब्लोग के बारे में भी बताया. बहुत खुश हुए. कहने लगे कि फ़ालतु लोगों के लिये फ़ालतु समय का इससे अच्छा उपयोग कुछ भी नहीं हो सकता. मैंने जब कहा कि टिप्पनियां कम मिल रही है तो उन्होंने मशविरा दिया कि भिखारियों की तरह भगवान या अल्लाह के नाम पे मांगेंगे तो जरुर मिलेगा. नहीं तो आजकल लोग देह का मैल भी मुफ़्त में नहीं देते.लेकिन तुम्हारे ब्लोग "क्रांतिदूत" से वह चिंतित है.कहने लगे क्रांति तो अपने आप आयेगी दूत बननें की जरुरत नहीं है.क्रांति के दूत के साथ कभी अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता. दूत ही बनना है तो शांतिदूत बनें."
मैंने कहा---"तुमने यह नहीं पूछा कि शान्तिदूत बनुंगा तो लिखुंगा क्या..?"
"हां..पूछा...कहने लगे......देश के महान नेता लोग, मंत्री महोदय भले ही खुलेआम खजाना लूट रहे हों---फ़िर भी शांति बनाये रखें.......खुलेआम चौराहे पर किसी की इज्जत लूटी जा रही हो---फ़िर भी शांति बनाये रखें.....आतंकवादी और नक्सली खुलकर लोगों को मार रहे हों---फ़िर भी शांति बनाये रखें...खुलेआम मजहब के नाम पर नफ़रत फ़ैलाये जा रहे हों---फ़िर भी शांति बनाये रखें.....भ्रष्टाचार और मंहगाई बेलगाम हो जाये--फ़िर भी शांति बनाये रखें. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि देश भांङ में जाये---फ़िर भी शांति बनाये रखें.......

क्रमश:

16 comments:

vijai Mathur said...

Arvindji,
Vyanga bhi vastvikta aadharit hi hai.Patey ki baten hain.
DHanyavad

कडुवासच said...

... बहुत बढिया ... धमाकेदार पोस्ट ... विचारणीय क्रांतिदूत या शांतिदूत !!!

alka mishra said...

ये सारे दामाद क्रांतिदूत ही क्यो होते है?

Yashwant R. B. Mathur said...

एक अर्थपूर्ण और सटीक व्यंग्य.
मैं अपनी छोटी सी समझ के आधार पर कह सकता हूँ कि पुननिर्माण के लिए और भटके हुए समाज को एक नयी दिशा देने के लिए क्रांति और क्रांति के ध्वज वाहक (जिसे क्रांति दूत भी कह सकते हैं)का होना ज़रूरी है.छिछोरपन से हट कर एक अर्थ पूर्ण हास्य व्यंग्य कि प्रस्तुती के लिए झा साहब धन्यवाद के पात्र हैं.

संजय @ मो सम कौन... said...

अरविन्द जी,
मजा आ गया, आप दोनों ससुर-दामाद एक दूसरे के बारे में काफ़ी उच्च विचार रखते दिखे:)
सच में मजेदार लगी दोनों पोस्ट्स।

Manish aka Manu Majaal said...

आपने तो सास-बहू की तू-तू मैं-मैं को नया version दे दिया .. ! updated version .. !

Unknown said...

कहने लगे......देश के महान नेता लोग, मंत्री महोदय भले ही खुलेआम खजाना लूट रहे हों---फ़िर भी शांति बनाये रखें.......खुलेआम चौराहे पर किसी की इज्जत लूटी जा रही हो---फ़िर भी शांति बनाये रखें.....आतंकवादी और नक्सली खुलकर लोगों को मार रहे हों---फ़िर भी शांति बनाये रखें...खुलेआम मजहब के नाम पर नफ़रत फ़ैलाये जा रहे हों---फ़िर भी शांति बनाये रखें.....भ्रष्टाचार और मंहगाई बेलगाम हो जाये--फ़िर भी शांति बनाये रखें. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि देश भांङ में जाये---फ़िर भी शांति बनाये रखें.......wah arvind ji

दीपक 'मशाल' said...

ha ha ha ati sundar ji..

Akshitaa (Pakhi) said...

हा..हा..हा..मजेदार.
____________________
नन्हीं 'पाखी की दुनिया' में भी आयें.

संजय भास्‍कर said...

अरविन्द जी,
एक सटीक व्यंग्य
..............और मजेदार.

Urmi said...

वाह! बहुत ही सुन्दर, शानदार और मज़ेदार व्यंग्य! बेहतरीन प्रस्तुती!

Dr.R.Ramkumar said...

खुलेआम चौराहे पर किसी की इज्जत लूटी जा रही हो---फ़िर भी शांति बनाये रखें.....आतंकवादी और नक्सली खुलकर लोगों को मार रहे हों---फ़िर भी शांति बनाये रखें...खुलेआम मजहब के नाम पर नफ़रत फ़ैलाये जा रहे हों---फ़िर भी शांति बनाये रखें.....भ्रष्टाचार और मंहगाई बेलगाम हो जाये--फ़िर भी शांति बनाये रखें. उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि देश भांङ में जाये---फ़िर भी शांति बनाये रखें.......

क्या सवाल हैं ..बोलती बंद..काष इस तरह की वारदात बंद हो जायें।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

हास्य-व्यंग्य विधा पर सुंदर आलेख चल निकला है..इसे जारी रखें और अपनी भड़ास यूँ ही निकालते रहें।
..बधाई।

डॉ० डंडा लखनवी said...

"व्यंग्य" को रणमूलक लेखन कहा गया है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आपने अपने लक्ष्य की सटीक घेराबंदी की है।
साधुवाद सुन्दर रचना के लिए...
-डॉ० डंडा लखनवी

निर्मला कपिला said...

आज ही पिछला भाग भी पढा बहुत जोरदार व्यंग है। बधाई। अब अगला भाग पढने जा रही हूँ।

दिगम्बर नासवा said...

अच्छी प्रस्तुति ... व्यंग की अच्छी धार है ... न लगते हुवे भी चोट है ....