सत्ता पाना ही भ्रष्टों का मूलमंत्र हो गया,
क्या सोचा था क्या ये लोकतंत्र हो गया !
परदे के पीछे से चल रहा आज छद्म-राज है,
कुर्सी पर बैठी कठपुतली एक यंत्र हो गया !!
युवराज यूं घूमता है अपने इस साम्राज्य में,
मानो यह प्रजातंत्र नहीं राजतंत्र हो गया !
चाटुकार लूटता खूब, उसके लिए तो यह देश,
नोट उत्पादन का एक खासा सयंत्र हो गया !!
15 comments:
वाह वाह वाह
क्या सुपररिन की धुलाई की है।
एकदम झकास और चकाचक
थोड़ी टीनोपाल की चमक भी दिख रही है।
हा हा हा
yah vyang maatr nahi hai, aaj ki sachchaaai hai. jagate rahiye aur jagate rahiye lekin kyaa inki need khulegi itni aasani se? Thanks for bold article.
मालिकाना हाथ बदल गए , है गुलामी वहीँ की वहीँ,
किस मुँह से कहे 'मजाल', देश स्वतंत्र हो गया !
... bahut khoob !!!
सटीक !
युवराज यूं घूमता है अपने इस साम्राज्य में,
मानो यह प्रजातंत्र नहीं राजतंत्र हो गया ...
आपका इशारा समझ गये ... बहुत लाजवाब व्यंग है ...
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awesome !...You made me speechless !
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all iss welll.
बहुत अच्छॆ क्या धुलाई की है
वाह वाह! क्या बात है! बहुत खूब! उम्दा प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
वृहत्तर समाज का ही एक हिस्सा है हमारा लोकतंत्र.
बहुत खूब! उम्दा
"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...
1968 mey kartoon chapa tha -jis tantra mey Lok ki punch pakar kar Jan ki Vaitarni par ki jati ho usey Loktantra kahtey hain.
Lagta hai usi ka Kavya chitrankan padh liya.
Dhanyavad
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