मैं काफ़ी परेशान था. अब तो आप भी जान गये होंगे कि बच्चे को पढाने कहा तो किस तरह की शिक्षा दी गयी. शोपिन्ग के लिये भेजा तो गांधी की जगह मल्लिका शेरावत का फ़ोटो ले आये .उपर से फ़ास्ट-फ़ूड का सुपरफ़ास्ट अफ़ेक्ट देखने को मिला. अगले दिन जैसे ही घर लौटा जिद करने लगे----"दामादजी मुझे कोमनवेल्थ गेम दिखाईये."
मैंने कहा----"यह गेम तो ३ अक्तुबर से होनेवाला है."
हंसने लगे...बोले----"उस खेल में तो जो होनेवाला है वो सबको पता है. खेल तो अभी मजेदार हो रहा है. खुद मनमोहन सिंह भी झूम रहे होंगे. वाह.... क्या व्यवस्था किया है. दिल्ली में कोमनवेल्थ के नाम पर अभूतपुर्व विकास हुए हैं. इसके लिये शीला दिक्षीतजी को गोल्ड मेडल मिलना चाहिये."
"गोल्ड मेडल...? सङकों की गड्ढों में पानी भरे हुए हैं इसके लिये...?"
"दामादजी गड्ढे तो कहीं भी हो सकते हैं. शीलाजी ने अपने नहाने के लिये कोई तालाब नहीं खुदवा दिया जो लोग हल्ला मचा रहे हैं. उपर से इन्द्र देवता की कृपा से बारिश हुई है तो गड्ढे में पानी तो भरेंगे ही. इसके लिये राजनीति नहीं विज्ञान जिम्मेवार है जिसके चलते पानी गड्ढे में भर गये. जितने गहरे गड्ढे हैं उससे ज्यादा गहरी चिंता शीलाजी के चेहरे पर साफ़ दिख रही है. उपर से आशा कि किरणें दिखाई दे रही है कि भविष्य में गड्ढों में भी सङकें बनायी जा सकेंगी."
गुस्सा तो बहुत आया. जिस शीला दीदी के व्यवस्था पर पूरा देश थू-थू कर रही है उसे ससुरजी दाद दे रहे थे.मैंने पूछा "और ओवर-ब्रिज जो ढह गया उसके किये किसे गोल्ड देंगे ?"
"श्री सुरेश कलमाडी जी को. उनका पूरा ध्यान गेम पर है न कि ओवरब्रिज पर. कोई भी खेल सिर्फ़ खिलाङियों से ही आगे नहीं बढता. कोच, मैनेजर, खेल संघ के अधिकारी, खेल मंत्री, ठेकेदार और सट्टेबाजों की भी भूमिका होती है. इनमें से कोई भी ओवर-ब्रिज को ढाहने नहीं गया था. यदि ढह गया तो ईंजिनियर से पूछा जाना चाहिये कि पुल क्यों ढहा.."
" तो सारा दोष आप ईंजिनियर को देते हैं ?"
" नहीं...बिल्कुल नहीं. लोहे-सिमेंट की ब्रिज हो या आदमी--किसी के लाइफ़ की गारंटी कोई कैसे दे सकता है."
"लेकिन पापाजी फ़ुट-ओवरब्रिज के ढहने से तेइस लोग मामुली रुप से घायल हो गये और चार लोग जिन्दगी-मौत के बीच झूल रहे हैं"
" दिल्ली में तो बस में चढे लोग भी मामुली रुप से घायल हो जाते हैं. जो लोग जिन्दगी-मौत के बीच झूल रहे हैं उन्हें बधाई देता हूं---झूला झूलने का आनन्द उठावें. झूला झूलना तो हम भारतियों का प्रिय शौक रहा है. इसमें तो हमें मजा ही आता है."
" फ़िर आप किसको दोषी मानते हैं..?"
" किसी को भी नहीं. देश को कोई नुकसान नहीं हो रहा जो किसी को गलत मानूं..अपने देश का पैसा था देश के लोगों ने खाया. कोई चार्ल्स शोभराज तो पैसा नहीं लूट गया. देश की छवि भी सुधरी है."
"देश की छवि सुधरी है ? "
"बिल्कुल...अब तक अमेरिका और पश्चिमी देश कहते थे भारत गरीबों का देश है, यह सपेरों का देश है ,यहां के लोग जादू-टोना में यकीन करते हैं. अब देखियेगा दामादजी ...यही लोग कहेंगे भारत चालाकों और धूर्तों का देश है. इतना अमीर है कि सत्तर हजार करोङ रुपये फ़ूंककर सङकों पर गड्ढे बनवाती है. करोङो रुपयों से ओवरब्रिज बनवाती है जिसके रोतो-रात ढह जाने से किसी को दुख नहीं होता"
"और सुरक्षा व्यवस्था...?"
"सुरक्षा व्यवस्था तो इतनी अच्छी है कि विस्फ़ोटक लेकर भी एक ओस्ट्रेलियाई सकुशल स्टेडियम तक पहुंच गया. दिल्ली में खुलेआम बिक रहा है लेकिन विस्फ़ोटक बेचनेवाले, खरीदनेवाले और दिल्ली की देखनेवाली जनता सभी सुरक्षित हैं....इससे बढकर सुरक्षा व्यवस्था क्या होगी."
"ऐसे में खेल चलने लगेगा और सीमा-पार से आतंकवादी घुस आये तो...?"
"कौन सी सीमा. कहीं आप भारत पाक सीमा की बात तो नहीं कर रहे. जब आतंकवादी और विस्फ़ोटक इधर भी है और उधर भी...तो सीमा बीच में कैसे हो गयी. सीमा तो अफ़गानिस्तान के आस पास होनी चाहिये.दूसरी बात हम सात साल से गेम की तैयारी कर रहे हैं तो पाकिस्तान गेम चालू हो जाने के बाद तैयारी करेगा..?"..........वैसे पाकिस्तान तो शान्ति-प्रिय देश है जहां कोई भी आतंकवादी नहीं है."
"क्या कह रहे हैं आप...पाकिस्तान में कोई आतंकवादी नहीं है."
"बिल्कुल नहीं. वहां के लोग तो सिर्फ़ युद्ध का प्रशिक्षण लेते है. प्रशिक्षण के बाद वे अमेरिका, औस्ट्रेलिया और इंगलैंड चले जाते हैं...जो बाच जाते है ईंडिया आ जाते है. पाकिस्तान में तो कोई रहता नहीं...बेकार लोग बदनाम करते हैं"
"अभी तो मणिशंकर अय्यर जी कह रहे थे कि खेल का अयोजन होना चाहिये जिससे हमारा हुंह काला न हो..."
"मणिशंकरजी खुद गोरे हैं क्या जो मुंह काला हो जायेगा. गोरे तो अंग्रेज थे..हम भारतियों को तो वे लोग सदा से काले समझते रहे. जितना लूटना था लूट गये और इस हाल में छोङ गये कि और भी मुह काला होने की नौबत आ गयी है."
अब मैं नहीं सह पा रहा था. हर गलत बात को ससुरजी जस्टिफ़ाइ कर रहे थे. पुन: मेरे दिल का दर्द जुबां से निकला
"इंगलैंड और आस्ट्रेलिया के कई एथलीट भारत नहीं आ रहे हैं......?,,,,,,"
"इससे क्या फ़र्क पङता है .यहां डेंगू के सिवा उन्हें कुछ भी हाथ नहीं लगता. दौङ में मेडल नहीं जीत पाते. हमारे देश की जनता दिल्ली दौङती ही रहती है ...न ही कभी नेताजी के दर्शन होते हैं और न ही मेडल मिलता है...इसलिये दौङ का मेडल तो हमारे देश में ही रहेगा."
"बांकी खेलों में..?"
"बांकी कौनसी खेल...? स्वीमिंग....? दिल्ली में बाढ आयी हुई है. देश के तैराकों के पास प्रेक्टिस का सुनहाल मौका है...देखियेगा ये सारे मेडल देश में ही रहेंगे.जिस तरह से तैयारी चल रही है. कोई भी खेलने दिल्ली नहीं आयेंगे....अपने देश के खिलाङी भी नहीं.फ़िर सुरेश कलमाडीजी शुटिंग करेंगे, शीला दीदी तैराकी में भाग लेंगी, खेल मंत्री एथलीट बनेंगे और मनमोहन सिंहजी गोला फ़ेकेंगे. सारे के सारे मेडल देश में ही रह जायेगा. इतिहास बन जायेगा.
"मुझे नहीं लगता कि कोई भी खिलाङी खेलने नहीं आयेगा.."
"आयेंगे तो आयें...हमने मना थोङे ही किया है. यमुना का जल स्तर बढ ही रहा है. कुछ दिनों के बाद एयर-पोर्ट और बस अड्डे पर भी पानी होगा... लंदन से नई दिल्ली पानी के जहाज से आ सकें तो आयें.....उपर से यदि कहीं सङक धंस गया तो हम जिम्मेवारी नहीं लेगें और......डेंगू फ़ैलानेवाले मच्छर हमारी बात नहीं मानते ये भी जान लें. हम अच्छा खेलने पर गोल्ड की गारंटी दे सकते है...लाइफ़ की नही."
अगले भाग में ससुर जी थाइलैन्ड से मिले नौकरी के ओफर का जवाब देंगे .... क्रमश
5 comments:
ससुर जी के माध्यम से आप करारा व्यंग्य कर रहे हैं.........बेहतरीन श्रृंखला!!!
Arvindji,
Comanwealth Games ke bahane Vyavastha -Tantra ki kargujarion per thik prakash dala hai.
... bahut badhiyaa ... jaaree rakhen !!!
क्या ससुर जी कल टिंकू के साथ गांधी जी का Birth Day भी Celebrate करेंगे?
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अब क्या कहें ! ...इतना बढ़िया आफर भी नहीं सोहा रहा उन्हें। वो कहते हैं न -- " ससुर जी क्या जाने, अदरक का स्वाद ".... < Winks >
Great post !
Regards,
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