सपने भी न देख सका था,
भरकर पेट सोया ही कब था
खाकर घाव हमने कांटों से
जी भरकर रोया ही तब था.
उसे जो उपर बैठा प्रति पल
आज मेरी दुनियां भायी है
आज चांदनी घर आयी है.
पूनम की रौशन रातों में
हमने देखा था गुप्प अंधेरा
हर रात अमावस जैसी थी
उजङा था हम सब का बसेरा
आज हवा गुनगुना रही है
दर्द दिलों के शरमायी है
आज चांदनी घर आयी है.
बहुत दिनों के बाद आज
चावल के दाने घर आये
खुशियां सबके दिल में छायी
हंसे, चेहरे जो थे मुरझाये
मां की पथरीली आंखों में
गजब आज चमक छायी है.
आज चांदनी घर आयी है.
12 comments:
बहुत सुन्दर भावों से बुनी अच्छी रचना ..
... bahut sundar !!!
एक भूखे की कला का रूप तो देखो ...
चाँद में भी उसने रोटी तलाशी है ....
दिल को छूने वाली रचना है ....
काश इस चांदनी का स्वागत सभी आप की ही तरह करे !
बहुत बढिया.
बहुत सुन्दर
बहुत दिनों के बाद आज
चावल के दाने घर आये
खुशियां सबके दिल में छायी
हंसे, चेहरे जो थे मुरझाये
मां की पथरीली आंखों में
गजब आज चमक छायी है.
आज चांदनी घर आयी है.
Bahut sundar arvind ji .
सार्थक लेखन के लिए बधाई
साधुवाद
लोहे की भैंस-नया अविष्कार
आपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
wah! ati sundar.........aap kavita lekhan me nipun hai
बेहद खुबसूरत रचना ....
अक्सर रुखी रातों में
बहुत सुंदर । आखरी पद तो बहुत ही सार्थक है ।
बहुत दिनों के बाद आज
चावल के दाने घर आये
खुशियां सबके दिल में छायी
हंसे, चेहरे जो थे मुरझाये
मां की पथरीली आंखों में
गजब आज चमक छायी है.
आज चांदनी घर आयी है.
बधाई ।
ख़ूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना! बधाई!
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