Friday, October 1, 2010

मैं,मेरी श्रीमतीजी और.............भाग-८ (व्यंग्य)

अचानक एक दिन थाइलैंड से ससुरजी के लिये दो लाख भात( थाइ करेन्सी) प्रति महिना वेतन का एक ओफ़र आया. ये आइडिया मुझे काफ़ी पसन्द आया. सोचा एक दो सप्ताह में समझा - बुझाकर पासपोर्ट और वीसा बनवाकर थाइलैंड भेज देन्गे....सप्ताह-दो सप्ताह तक ब्लोग के लिये कविता लिखवाते हैं क्योंकि अब मैं उन्हें बिल्कुल ही झेल पाने की स्थिति मे नहीं था. कविता लिखने कर ब्लोग पर देने की सलाह से काफ़ी खुश हुए. कहने लगे मैं कविता गाता हूं आप पोस्ट करते जाइये--

गरीबी और लाचारी की एक सोंग गा रहा हूं.
पता नहीं मुझको कि राइट या रोंग गा रहा हूं

पल में ही नेताजी आकर गीत गाकर चले गये.
एक मैं ही हूं जो गाना इतना लोंग गा रहा हूं.

भ्रष्टता के गीत गाते सभा में बैठे सभी सभासद
क्या करूं , लाचार हूं .कोन्ग-कोन्ग गा रहा हूं.
                                   ( Congress)

भजन गा रहे हैं देश और दिल्ली की पब्लिक.
मैं ही हूं जो पेरिस और होन्गकोंग गा रहा हूं.

लोग झोली भरकर भी गीत गाकर मांगते हैं.
मैं भूखा "मांग" के बदले मोंग-मोंग गा रहा हूं.

भरे पेट होते हैं जिनके वे सच्चे गाने गाते हैं.
नकली खुशियां झूठी आवाज में ढोंग गा रहा हूं."

ससुरजी तो गाना गा रहे थे मैं मुश्किल से झेल पा रहा था. उनके गीत को ब्लोग पे डालता तो मेरे ब्लोगर मित्र स्याम भाई मेरा बाजा फ़ोङ देते और बिगुलवाले सोनीजी चिन्दी-चिन्दी कर देते. सोच ही रहा था कि पूछने लगे----
" कैसा लगा दामादजी यह गजल ?"
"गजल तो इतना बढिया बना है कि शब्द ही नहीं हैं---बिल्कुल नयी फ़सल है यह गजल. क्या लय है ....सोंग....रोंग.. लोंग...वाह"---- प्रशंसा तो हर किसी के कविता पर करनी चाहिये और ये तो मेरे ससुर थे. अच्छा मौका था. मैंने कहा---- "पापाजी थाईलैंड से मेरे एक ब्लोगर मित्र ने आपको एक काम के लिये ओफ़र दिया है. रोजगार भी मिलेगा और विदेश घूमने का मौका भी."

"वेतन कितना मिलेगा"---ससुरजी ने पूछा. मैंने जबाव दिया---"दो लाख भात प्रति महिना"

ससुरजी बोले---" दो लाख भात../? अगली कविता पोस्ट कीजिये----


खाने के लिये चाव चाहिये.
भात नहीं मुझे भाव चाहिये.
बहुत प्यार दिया दुनियां ने
एक - दो छोटे घाव चाहिये.


भूखे को जिसने दी रोटी
उसी ने लूटी उसकी बेटी
पहले तो दे दोगे भात
फ़िर मारोगे पीछे लात
अपनी दुनिया रौशन है
मुझको थोङा छाव चाहिये.
भात नहीं मुझे भाव चाहिये."

मैंने कहा---" वाह (कहना ही पङता है)....लेकिन यह ओफ़र बहुत ही अच्छा है पापाजी"
तभी बीच मे आकर श्रीमतीजी बोलने लगी------

"छिन रहे उनकी आजादी

वाह रे वाह तेरी दामादी

कहीं नहीं जायेंगे पापाजी

छोङकर घर सीधी- सादी."


वह भी आज कविता में ही बात कर रही थी लेकिन रस में फ़र्क था ससुरजी करुण रस और श्रीमतीजी वीर रस गा रहे थे. मेरे लिये तो उस समय दोनो रस विष बन चुका था.



अगले भाग में नौकरी के ओफ़र पर विचार जारी रहेगा.... क्रमश

12 comments:

Shabad shabad said...

बहुत बढ़िया जी !!
नौकरी का औफर ..
जिहा सुख छज्जू दे चुबारे
ओ ना बल्ख ना बुलारे !!!

समयचक्र said...

गरीबी और लाचारी की एक सोंग गा रहा हूं.
पता नहीं मुझको कि राइट या रोंग गा रहा हूं

वाह भाई ..आनंद आ गया .... बढ़िया व्यंग्य रचना ...

सदा said...

बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ।

Yashwant R. B. Mathur said...

Fantastic!

vijai Rajbali Mathur said...

Isi kram me Ayodhya Per bhi apne Sasurji se Vichar dilvayen.

Patali-The-Village said...

वाह भाई ..आनंद आ गया ....बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ।

निर्मला कपिला said...

बहुत बढिया चल रहा है व्यंग। बधाई कांग कांग की बजाये बज बज बी जे पी} करो अब। बधाई

कडुवासच said...

...behatreen !!!

Vidushi said...

hehehe... nicely chosen subjects n moreover nicely written by you... 'll wait for next post...

पूनम श्रीवास्तव said...

गरीबी और लाचारी की एक सोंग गा रहा हूं.
पता नहीं मुझको कि राइट या रोंग गा रहा हूं
ek vyang se paripurn rachna.
bahut hi shandaar.
poonam

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

bahut hee sundar...........vaah bhai vaah..........bhaat nahi bhaav chahiye... badi sundar rachnaa..

संजय भास्‍कर said...

आनंद आ गया

bhaskar khus huaa.......