नहीं जानता मैं रुक जाना
बाधाओं से डर झुक जाना
मैं तो पानी की धारा जैसे
अक्सर ही बह जाता हूं.
पता नहीं किसने कब रोका
मेरी छाती पर भाला भोंका
खुद ही अपनी मरहम बन
दुख सारी सह जाता हूं.
मेरे भी हजारो सपने हैं
हर कोई मेरे अपने हैं
मैं अपनों को दे ऊंचाई
चलता ही रह जाता हूं.
खामोशी मेरी आदत है
चुप रहना ही इबादत है
कलम की धार से ही मैं
सब कुछ कह जाता हूं.
11 comments:
भावों की सशक्त अभिव्यक्ति!
सभी ही अच्छे शब्दों का चयन
और
अपनी सवेदनाओ को अच्छी अभिव्यक्ति दी है आपने.
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
शुरू की चार पंक्तियो में ही साडी कहानी कह दी ......आपने !
बधाई हो ..
जय हो मंगलमय हो
बहुत ही प्यारी और ख़ूबसूरत सी रचना है...
इतने अच्छे लेखन के लिए बधाई स्वीकार करें...
मेरे ब्लॉग पर इस बार
अग्निपरीक्षा ....
पता नहीं किसने कब रोका
मेरी छाती पर भाला भोंका
खुद ही अपनी मरहम बन
दुख सारी सह जाता हूं...
Quite motivating !!
.
apni khamoshi se
kamjor ho pata nahi
kalam ki dhaar se
hi sab keh jata hoon :)
gud one!!
बहुत अच्छे , लिखते रहिये ....
बहते रहिये, बंधु।
नहीं जानता मैं रुक जाना
बाधाओं से डर झुक जाना
मैं तो पानी की धारा जैसे
अक्सर ही बह जाता हूं.
Bahut khoob...lekin ant me kyon virodhabhas hai?
@parulji@kshamaji
aapke salaah ke anusaar maine jaruri sudhaar kar diya hai...sujhaav ke liye dhanyavaad.
Post a Comment