Wednesday, February 3, 2010

दिवा-स्वप्न

रात मे तो सभी सोते हैं क्योंकि रात सोने के लिये ही होता है.जब सोते हैं तो सपने देखना स्वाभाविक ही है.नेताओं को रात के सपने में कुर्सियां दिखाई देती है, चोरों को खजाना.पुलिस जो पुरे-दिन निर्दोषों को पडेशान करती है और मुजरिमों के पीछे दौडती है,रात के सपने मे उसी मुजरिम को सलाखों मे डालती है.ईमानदार सरकारी बाबू सपने मे महगाई भत्ता बढता हुआ देखता है तो मेरे जैसे आलसी नौकरीवालों को रात के सपने मे फ़ुरसत ही फ़ुरसत दिखाई देता है. कल एक ज्योतिषी जी बता रहे थे जब से उन्हें टी.वी. न्यूज चैनल पर बुलाया गया है तब से सपने में सूर्य-ग्रहण दिखाई देने लगा है.. स्वयं ही ज्योतिष हैं सो फ़लादेश जानकर चिंतित हैं.कुछ दिन पहले मेरे एक मीडियावाले मित्र कह रहे थे "यार, आजकल सपने मे ऎसे वारदात आने लगे हैं जो दिल और दिमाग मे सनसनी पैदा कर देते हैं.लेकिन आदमी मजबूर है,क्या करे, सोयेगा तो सपने तो आयेंगे ही.वैसे मेरी मुश्किलें अलग हैं.आजकल रात को नींद नहीं आती,सो सपने भी नहीं देखता.सोना आदमी के लिये जरूरी है इसलिये दिन में ही सोने का काम पूरा कर लेता हूं.एक तो सूचना-प्रोद्योगिकी की मेहरबानी है कि काम कम हो गया है भय के कारण सीनियरों को नींद मे खलल डालने मे संकोच होता है.उपर से रिक्त पदों के कारण कई कुर्सियां खाली रहती है जिन्हें जोडकर आसानी से सोने के लिये छह फ़ीट का बेड तैयार हो जाता है. कार्यालय के छह फ़िट्टा बेड पर प्रतिदिन छह घंटे सोने का मजा ही अलग है.इससे कार्यालय में शांति-व्यवस्था बनी रहती है.कनिष्ठजनों के साथ किसी तरह के दुर्व्यवहार के पाप से बचाव होता है और सीनियरों के अत्याचार का सामना करने से मुक्ति मिलती है.वातानुकुलित कक्ष में सोने से प्रदुषण से भी छुटकारा मिलता है और कर्मठता भले ही संदिग्ध हो जाये लेकिन योग्यता पर वरिष्ठजनों का औचित्य से अधिक विश्वास बना रहता है.
पहले जब बहुत काम करता था,मेरी गलतियों से सभी परेशान रहते थे.काम करने के बाद पुरस्कार स्वरूप गलतियों के लिये प्रमाण-पत्र के रुप मे चार्ज-शीट थमा दिये जाते थे.सबेरे ताजे सेब की तरह कार्यालय जाता था और शाम को सूखे संतरे की तरह घर आता था.बहुत परेशान रहता था. तभी एक दिन मेरे ही विभाग की दूसरे कार्यालय मे काम करनेवाली एक महिला किसी कम से कार्यालय आयी. वह अच्छी तरह से सज-संवरकर आयी थी.मैं उन्हे देखकर चकित रह गया.वह देखने मे साधारण थी लेकिन चेहरे का मेक-अप उत्कृष्ट था. वह आते ही खाली कुर्सी पर निश्चिंत होकर बैठ गयी औए अपने पर्स से एक छोटा सा आईना निकालकर अपने चेहरे को देखने लगी.फ़िर मुझे टोका "महाशय, टेंशन मे लग रहे हो?" फ़िर जोरदार ठहाका मारते हुए कहा"रेलवे मे लोगे टेंशन तो वाइफ़ उठायेगी पेंशन".उस महिला के उत्कृष्ट व्यंग्य को महान सलाह मानकर उस दिन मैंने अपनी सारी चिंताये राम-भरोसे(मेरे कार्यालय का चपरासी) छोड दिया.राम भरोसे ने भी मेरे भरोसे को कायम रखा और मुझे चिंता मुक्त कर दिया.
चिंता से तो मैं मुक्त हो गया लेकिन.........अब भी डर बना रहता है.जब दिन मे सोता हूं काफ़ी डरावने सपने आते हैं.वैसे यह दिवास्वप्न लगता है जैसे हकीकत हो,लेकिन फ़िर भी भयानक ही होता है..किसी दिन सपने मे वकील सारी कमाई चूस लेता है तो कभी निर्दोष होते हुए भी बेरहम पुलिस भद्दी गालियों के साथ्लाठियों से स्वागत करता है. कभी अपने दो वक्त की रोटी का टुकडा अपना ही नेता हडप कर जाता है तो कभी चंद रुपयों मे बिककर चैनलवाले नंगा कर देते हैं.किसी दिन दूधवाला थोडी सी शुद्ध दूध मे पानी औएर केमिकल-जहर मिलाकर दे जाता है तो किसी दिन शराब पीकर अपना पडोसी मेरे पुरे खनदान को गाली देने लगता है.कभी कोई दलाल चुप-चाप मेरे पुस्तैनी जमीन को बेच देता है तो कभी कोई ठेकेदार मुझ जैसे गरीब के घर को उजारने का ठेका ले लेता है.किसी दिन जब पेट की भूख बैचेन कर देती है तो आज के लेखक हंसाने के लिये व्यंग्य करते हैं और कवि खुबसूरत कविता बनाकर लोडी सुनाते हैं. किसी दिन बेखौफ़ अपराधी आंखों के सामने चौराहे पर किसी औरत की ईज्जत लूटता है तो किसी दिन बडे ओहदेवाला आदमी किसी नाबालिग..........ओह.....,.
लेकिन यह मेरी शिकायत नहीं है.किससे शिकायत की जाये. न्याय की देवी भी आजकल मेरी तरह अपने कार्यालय मे सोती रहती है और दिवास्वप्न देखती रहती है.

3 comments:

निर्मला कपिला said...

मन का अन्तर दुअन्द आज के परिवेश मे झलक रहा है अच्छी लगी ये रचना शुभकामनायें

कडुवासच said...

....कुछ आश्चर्यजनक अभिव्यक्ति है टिप्पणी करना कठिन जान पडता है!!!

arvind said...

आश्चर्यजनक अभिव्यक्ति ......? pls comment.