कैसे गाऊं गौरव गाथा ?
बच्चे मां के दुध के प्यासे
फ़ुटपाथों पर सोते हैं.
आज भी भूखी-नंगी जनता
गम के साये मे जीते हैं.
आज भी ईंसां बेचा जाता,
झुकता जाता अपना माथा.
कैसे गाऊं गौरव गाथा ?
आतंकी के बंदूकों से
काटी जाती जीवन की रेखा.
मंहगाई पर विधि-निर्माता,
कहते हैं यह भाग्य का लेखा.
आज भी खुशियां अपनी-अपनी,
अलग-अलग हैं गम और बाधा.
कैसे गाऊं गौरव गाथा ?
निर्वासित गांधी का भारत,
बलात्कार सच का होता है.
आजद हिन्द है जंजीरों में,
ईमान बाजारों मे बिकता है.
टकराते हैं जाति और मजहब,
अब लडती है क्षेत्र और भाषा,
कैसे गाऊं गौरव गाथा ?
अब तो अपनी मातृ-भूमि मे
बारूदों की खेती होती है.
नीलाम हो चुकी पुलिस की वर्दी,
इंसाफ़ सदा ही सोती है.
डालर मे अब वोट हैं विकते,
बदले शब्द, बदली परिभाषा.
कैसे गाऊं गौरव गाथा ?
मां रोती है अब बेटों को,
चुमते हैं बच्चे फ़ंदों को.
झूठे सपने दिखा-दिखाकर,
फ़हराये जाते झंडों को.
लुटते हैं इज्जत औरत की,
मारी जाती हैं भ्रुण-मादा.
कैसे गाऊं गौरव गाथा ?
4 comments:
EXCELLENT
सटीक
अब तो अपनी मातृ-भूमि मे
बारूदों की खेती होती है.
नीलाम हो चुकी पुलिस की वर्दी,
इंसाफ़ सदा ही सोती है.
डालर मे अब वोट हैं विकते,
बदले शब्द, बदली परिभाषा.
कैसे गाऊं गौरव गाथा
सटीक सत्य अभिव्यक्ति बहुत बहुत आशीर्वाद
.... बेहद प्रभावशाली रचना !!!
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