Sunday, February 21, 2010

"कशिश"-श्री अरविंद मेश्राम की शायरी

कभी मौसम सुहाना हो,घटा सावन की छा जाये,
कभी जब शाम तन्हा हो, तुम्हारी याद आ जाये.
कभी हम साथ चलते हों , अकेले सूनी राहों में,
चांद बादल से निकले , तेरी बाहों मे आ जाये.
कभी मौसम ..............

कभी बादे सबा आये इधर जुल्फ़ें तेरी छूकर,
कभी खुशबू उडे हरसू,सरे गुलसन पे छा जाये.
कभी मौसम ...............

सभी ये सोचते हैं , मैं हमेशा मुस्कुराता हूं,
मैं डरता हूं कोई आंसू मेरे पहचान न जाये.
कभी मौसम ............

वो सब कुछ जानता है पर कभी मिलने नही आता,
मेरे दिल को कहीं न भूल से , आराम आ जाये.
कभी मौसम ...............

कितना मुद्दत से रुठे हैं,ख्वाब मेरी निगाहों से,
ना आये मौत मुझको तो, थोडी नींद आ जाये.
कभी मौसम ..............

वो मुझको माफ़ कर देगा, तो थोडा और जी लेंगे,
न हो मुमकिन तो मेरी मौत का पैगाम आ जाये.
कभी मौसम ..............

महकते फ़ूल बन जायेंगे , जो अबके फ़ना होंगे,
अपने जूडे मे सजा लेना,जो हमारी याद आ जाये.
कभी मौसम ..............

रचनाकार:-
अरविंद मेश्राम
उप मुख्य सामग्री प्रबंधक
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे.
बिलासपुर, छ.ग.

4 comments:

दिगम्बर नासवा said...

कभी बादे सबा आये इधर जुल्फ़ें तेरी छूकर,
कभी खुशबू उडे हरसू,सरे गुलसन पे छा जाये...

सच मुच कशिश है इन लाइनों में अरविंद जी ..... बहुत खूबसूरत लिखते हैं आप .......

शरद कोकास said...

अरविन्द जी को पढकर अच्छा लगा । हमारे छत्तीसगढ़ मे भी रत्न छिपे हैं ।

कडुवासच said...

कितना मुद्दत से रुठे हैं,ख्वाब मेरी निगाहों से,
ना आये मौत मुझको तो, थोडी नींद आ जाये.
....सुन्दर रचना ... सुन्दर प्रस्तुति !!!!

निर्मला कपिला said...

सभी ये सोचते हैं , मैं हमेशा मुस्कुराता हूं,
मैं डरता हूं कोई आंसू मेरे पहचान न जाये

कितना मुद्दत से रुठे हैं,ख्वाब मेरी निगाहों से,
ना आये मौत मुझको तो, थोडी नींद आ जाये.
वाह बहुत कमाल की प्रस्तुति है । धन्यवाद इसे पढवीने के लिये