Monday, October 5, 2009

जंगल-राज

जंगल-राज
प्रजातंत्र हो जाने के बाद यहां जंगल मे भी राज चलाना काफ़ी कठिन हो गया है.उपर से राजनीति भी जोरों पर है.अभी हाल ही मे आम चुनाव हुए थे जिसमे शेर की पार्टी ने हाथी के दल को पटखनी दी और पुर्ण बहुमत लेकर सत्तासीन हुई.लम्बे-चौडे वादे किये गये.भेडों-बकडों के समुह को यह कहकर वोट मांगा गया कि शेर अब उसका शिकार नही करेंगे.मछलियों से वादा किया गया कि मगरमच्छों से उनकी रक्षा की जायेगी.छोटे-छोटे जानवरों को विश्वास दिलाय गया कि सस्ते दरों पर उन्हे चारा उपलब्ध कराये जायेंगे.किसी भी पशु-पक्षी को बेरोजगार नही रहने दिया जायेगा और सारे फ़ैसले जानवरों के हितों को ध्यान मे रखकर लिया जायेगा.हाथी के दल ने भी कुछ मिलते-जुलते वादे ही किये थे लेकिन अंततः पशुमत शेर की पार्टी के पक्ष मे रहा.हाथी को विपक्ष का नेता चुना गया और शेर की सरकार बनी.सियारों को प्रमुख मन्त्रालय दिये गये----क्योंकि चुनाव के दौरान उन्ही की ब्युहरचना और लिखे गये भाषण काम आये थे.
आमसभा मे हाथी ने चमचों को मंत्रालय दिये जाने पर सरकार की आलोचना की और यह भी आरोप लगाया कि जिन क्षेत्रों मे शेर की पार्टी को सीटें नही मिली उन क्षेत्रों से किसी को भी मंत्री नही बनाया गया.इस पर शेर शांत रहा और यह कहते हुए हंस दिया कि जब हाथी का शासन था तो वे सत्ता पाकर उनमत्त हो गये थे और बेरहमी से छोटे जानवरों को कुचल दिया था.इस पर विपक्ष मे बैठे जानवरों ने शोर मचाना चालू कर दिया.शेर भी आखिर शेर था, वह अपना मूल स्वभाव कैसे भूल सकता है.वह भी गुर्राने लगा. तभी एक मंत्री आकर शेर के कानों मे फ़ुसफ़ुसाया "महोदय ,मिडियावाले देख रहे हैं.यहां जो कुछ भी होता है उसमे मसाला लगाकर टेलीविजन के जरिये छोटे जानवरों को दिखाये जाते हैं. राजनीति यही कहता है कि सबके सामने सबको बोलने दो लेकिन अकेले मे जो विरोध करे उसकी जुबान काट लो.भरी सभा मे विरोध हो तो हंस्कर टाल दो और रात के अंधेरे मे विरोधी को पांव तले कुचल दो".शेर को थोडी बहुत राजनीति की बातें समझ मे आ रही थी.आखिर उसकी पुलिस-कुत्तों की फ़ौज, उसके जेब मे है और काली बिल्ली न्यायालय चलाती है.अकेले दम पर वह हजारो जानवरों को अपना शिकार बना सकता है.तभी विपक्ष से एक जानवर खडा हुआ और बोलने लगा "आप सभी जानवरों को सस्ते दर पर चारा कहां से देंगे जबकि आपके मंत्री खुद चार खा जाते हैं?". दुसरा बोला "जानवरों को बेवकूफ़ बनाकर पचासो साल से आप राज करते रहे,इतने दिनो मे आप ने क्या किया?".एक एक कर सभी जानवर बोलते रहे और शेर शांत भाव से सुनता रहा.फ़िर सभा क विसर्जन कर दिया गया.सायंकाल मिडियावालों को शेर ने अपने आवास पर बुलाकर बहुत अच्छा भोज दिया.उन्हे बकरे की मीट और मुर्गे की टांग पडोसी गयी.रात मे टीवी पर विपक्ष मे बैठे जानवरों के दुर्व्यवहार की खिल्ली उडायी गयी. सरकार की दूरदृष्टि की प्रशंसा की गयी.शेर की ईमानदारी और सहनशीलता की सराहना हुई.
रात के बारह बज चुके थे.काम करते करते शेर थक चुका था.वह बहुत भूखा था.मिडियावालों के साथ यह कहते हुए वह खाना नही खाय था कि उसने मांसाहार छोड दिया है.दिन के सर्वदलीय भोज मे पनीर की सब्जी जो उसे पसन्द नही है,यह बहान बनाकर नही खाया था कि आज उसे उपवास है.राजनीति का मतलब यह नही होत कि राज करनेवाला भूखा रहे और बांकी सभी मौज करें.उसे सियारों की यह राजनीति पसंद नही आयी.तभी एक सियार शेर के पास आया और भोजन-गृह मे पधारने का अनुरोध किया.सभी जानवर अपने-अपने घरों मे चले गये.शेर का भोजन-गृह जो कि एक अंधेरी गुफ़ा की तरह था-मे शेर प्रवेश कर गया.गुफ़ा मे घुसते ही स्वादिष्ट खाने का गंध उसकी नाक तक पहुंचने लगा.डरी हुई कई छोटी-छोटी निरीह आंखे अंधेरी गुफ़ा मे भी चमक रही थी.शेर मुस्कुराने लगा---अब उसे राजनीति अच्छा लगने लगा था.

6 comments:

Unknown said...

nice story,pls continue.thanks

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

Interesting symbolic story.welcome to blog duniya.
Dr.Bhoopendra

अजय कुमार झा said...

अरविंद जी ...आपका बहुत बहुत स्वागत है..ब्लोग जगत में..सार्थक लेखन से आप अपनी और ब्लोग जगत की प्रतिष्ठा को और भी आगे ले जायेंगे....यही कामना है

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

narayan narayan

Anonymous said...

great. welcome

Chandan Kumar Jha said...

सुन्दर लेखन । स्वागत है ।