भाग-२
तुमको मिल जाये ग्यानामृत,
प्रेम का हो पुष्प उदित,
यदि करो सब कुछ अर्पित,
हो संपुर्ण जगत का सुख अर्जित।
मेरा मंत्र ,यह याद रहे,
शेष रह अब अंतिम शिक्षा.
अपना सब कुछ वलि चढाकर,
करना तुम मातृभुमि की रक्षा.
जननी और जननी की भूमि
स्वर्ग से भी सुन्दर होती.
मां रोती जब पुत्र के होते,
मातृभूमि की आभा रोती।
अंतिम शिक्षा पुर्ण हो गया,
शांत हो गयी इतना कहकर.
देखा मुझको हो प्रेमातुर,
नयन कटोरा नीर से भरकर।
खिंची हृदय मे प्रश्न की रेखा,
हुए विना विचलित ही पुछा.
संशय क्या है? मुझे बताओ.
फ़िर आगे तुम कदम बढाओ।
क्रमश:................,
2 comments:
जननी और जननी की भूमि
स्वर्ग से भी सुन्दर होती.
मां रोती जब पुत्र के होते,
मातृभूमि की आभा रोती।
achhi kavita hai,---aage badhiye.
तुमको मिल जाये ग्यानामृत,
प्रेम का हो पुष्प उदित,
यदि करो सब कुछ अर्पित,
हो संपुर्ण जगत का सुख अर्जित।
मेरा मंत्र ,यह याद रहे,
शेष रह अब अंतिम शिक्षा.
अपना सब कुछ वलि चढाकर,
करना तुम मातृभुमि की रक्षा.
जननी और जननी की भूमि
स्वर्ग से भी सुन्दर होती.
मां रोती जब पुत्र के होते,
मातृभूमि की आभा रोती।
बहुत सुन्दर प्रेरणात्मक शिक्षा है अगर जीवन मे गघण कर सको तो बहुत अच्छे इन्सान बनोगे बहुत सुन्दर रचना है बधाई अगली कडी का इन्तज़ार रहेगा आशीर्वाद्
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