Friday, October 9, 2009

मेरी मां ने मुझे कहा था............,

(मेरी यह कविता मुझे जन्म देनेवाली मां इन्दिरा और नयी प्रेरणा देनेवाली मां निर्मला के लिये समर्पित है।मेरे ये शब्द उन सभी मांओं को समर्पित हैं जिन्होंने मातृत्व को नयी परिभाषा दी है.नारी निश्चित रुप से जननी है,अपने आप मे अन्य की तरह सद्गुणों से युक्त और हज़ारो अवगुणों के होते हुए भी वह निर्मला है.वह पहली और अंतिम पाठशाला है.उसके शब्दों के सागर को समेटना असंभव है.टुकडों मे ही सही सागर को समेटने का दुस्साहस कर रहा हुं.यदि प्रिय पाठकों को यह पसन्द आये तो आगे बढने का आदेश दें यही इस कविता की सार्थकता होगी.)
मेरी मां ने मुझे कहा था............,

भाग-१

तुम सुरज मेरे जीवन के,
सारे जग को रौशन करना.
जिस घर मे हो काली रातें,
उस घर मे तुम ज्योति जलाना।

सत्य तुम्हारा संबल होगा,
मानवता को धर्म बनाना.
करे मुक्त जो नीर नयन से,
ऎसा अपना कर्म बनाना।

हर मोड पर दो राह मिलेंगे,
पथिक नहीं घबराना उस पल.
जो पथ जग को स्वर्ग बनाये,
आगे बढना उस पथ पर चल।

लक्ष्य यदि हों पुष्प समान
पथ मे कांटे ही कांटे होंगे.
पाना हो जब सूर्य सी आभा,
तो पहले काली रातें होंगे।

राह मध्य तुम मत रुकना,
बाधाओं से कभी न झुकना.
हिंसा और असत्य से लडना,
शत्रु के भय से कभी न डरना। क्रमश:................,

3 comments:

Unknown said...

bahut barhia isi tarah likhte rahiye

http://mithilanews.com

निर्मला कपिला said...

हर मोड पर दो राह मिलेंगे,
पथिक नहीं घबराना उस पल.
जो पथ जग को स्वर्ग बनाये,
आगे बढना उस पथ पर चल।

राह मध्य तुम मत रुकना,
बाधाओं से कभी न झुकना.
हिंसा और असत्य से लडना,
शत्रु के भय से कभी न डरना।
पूरी कविता ही भावमय है प्रेरणात्मक है मगर ये दो पहरे बहुत ही सुन्दर लगे अच्छा लिखते हो लिखते रहो बहुत बहुत आशीर्वाद । एक दिन बहुत आगे जाओगे। शुभकामनायें

Chandan Kumar Jha said...

सार्थक संदेश देती सुन्दर रचना । आभार