(मेरी यह कविता मुझे जन्म देनेवाली मां इन्दिरा और नयी प्रेरणा देनेवाली मां निर्मला के लिये समर्पित है.मेरे ये शब्द उन सभी मांओं को समर्पित हैं जिन्होंने मातृत्व को नयी परिभाषा दी है.नारी निश्चित रुप से जननी है,अपने आप मे अन्य की तरह सद्गुणों से युक्त और हज़ारो अवगुणों के होते हुए भी वह निर्मला है.वह पहली और अंतिम पाठशाला है.उसके शब्दों के सागर को समेटना असंभव है.टुकडों मे ही सही सागर को समेटने का दुस्साहस कर रहा हुं.यदि प्रिय पाठकों को यह पसन्द आये तो आगे बढने का आदेश दें यही इस कविता की सार्थकता होगी.) मेरी मां ने मुझे कहा था............,
भाग-४
फ़िर आयी एक भयानक आंधी.
विखर गया मैं टूट-टूटकर.
पल मे हरियाली गायब हो चली,
लेकर आयी भीषण पतझड.
देखा, चारों ओर निराशा,
आती है नित नये रुप मे.
छल, घृणा-द्वेष, घनघोर हतासा,
छायी है मेरे जीवन मे.
जो पथ भरे थे फ़ूलों से,
अब सजे हुए हैं शूलों से.
पहले जहां कदम रखता था,
फ़ूलों का श्पर्स था होता.
वही कदम फ़िर से रखता हूं
शूल इसे क्यों छलनी करता ?
पथ वही , लक्ष्य वैसा ही हैं,
फ़िर चला क्यों नही जाता है?
क्यों कदम इतने कमजोर हुए
क्यों सहा अब नही जाता है?
मां ने मुझसे ठीक कहा था,
कालचक्र चलता रहता है.
आंधी भी बहती रहती है.
इन्द्रधनुष छाता रहता है.
4 comments:
क्यों कदम इतने कमजोर हुए
क्यों सहा अब नही जाता है?
मां ने मुझसे ठीक कहा था,
कालचक्र चलता रहता है.
आंधी भी बहती रहती है.
इन्द्रधनुष छाता रहता है.
बहुत सुन्दर चल रही है रचना। लगता है इसको पूरी पुस्तक का रूप दे रहे हो शुभकामनायें
han, aapne theek samajha ki ise ek pustak ka rup diya jaa raha hai, isliye ab sirf beech ka ek bhag hi blog per aayega, pls wait for the complete book, thanx.
मां ने मुझसे ठीक कहा था,
कालचक्र चलता रहता है.
आंधी भी बहती रहती है.
इन्द्रधनुष छाता रहता है.
bahut achhi kavita, pls continue.
कविता कहने का अंदाज़ और तारतम्य बहुत अच्छा लगा. साथ ही कविता में हमारे होने और न होने के बीच का द्वंद रचना को और सार्थकता प्रदान करता है.
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अंतिम पढाव पर-Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]
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