Tuesday, October 13, 2009

मेरी मां ने मुझे कहा था............,भाग-३

(मेरी यह कविता मुझे जन्म देनेवाली मां इन्दिरा और नयी प्रेरणा देनेवाली मां निर्मला के लिये समर्पित है।मेरे ये शब्द उन सभी मांओं को समर्पित हैं जिन्होंने मातृत्व को नयी परिभाषा दी है.नारी निश्चित रुप से जननी है,अपने आप मे अन्य की तरह सद्गुणों से युक्त और हज़ारो अवगुणों के होते हुए भी वह निर्मला है.वह पहली और अंतिम पाठशाला है.उसके शब्दों के सागर को समेटना असंभव है.टुकडों मे ही सही सागर को समेटने का दुस्साहस कर रहा हुं.यदि प्रिय पाठकों को यह पसन्द आये तो आगे बढने का आदेश दें यही इस कविता की सार्थकता होगी.) मेरी मां ने मुझे कहा था............,

भाग-३
मां,हृदय मेरा अति सुक्ष्म-तुच्छ है.
कहां समेटूं ग्यान का सागर ?
होता क्यों यह चित्त अति चंचल?
क्यों न थमता यह कुछ पल भर?

थम गयी नयन की नीर-वृष्टि,
मैने पाय ममतामयी दृष्टि.
मां हुई प्रश्न से इतनी खुश,
छाया चेहरे पर इन्द्रधनुष।

रख धैर्य पुत्र यह संभव होगा.
ग्यान का अमृत तुम्हे मिलेगा.
हो विश्वास स्व और प्रभु पर,
फ़िर जग में क्या होत दुष्कर।

जीवन मे वसंत फ़िर आयी.
चारों ओर छायी हरियाली.
सुख का सागर जब देखा मैंने,
भूल गया क्या कहा था उसने।

हृदय से लिपटा अभिमान का चादर
भूल गया क्या होता ईश्वर.
सोचा, उसकी सत्ता मैं क्यों मानूं ,
जब सब कुछ होता अपने बल पर।
क्रमश:................,

3 comments:

Unknown said...

हो विश्वास स्व और प्रभु पर,
फ़िर जग में क्या होत दुष्कर।
achi kavita.deevali ki subhkamna.pls continue.

Unknown said...

arvindji likhte rahiye---bahut achi kavita hai.badhayee.

निर्मला कपिला said...

जीवन मे वसंत फ़िर आयी.
चारों ओर छायी हरियाली.
सुख का सागर जब देखा मैंने,
भूल गया क्या कहा था उसने।
अकसर यही होता हओ मानव के साथ । दुनिया की अन्धी दौड मी सारी सीखें भूल जाता है । अच्छी रचना है बधाई और शुभकामनायें