Wednesday, February 10, 2010
कैद
पुलिस अधीक्षक का आदेश था.पुलिस और सरकारी तंत्रों को कलम के जरिये भ्रष्ट कहनेवाले आरोपी को हथकडी पहना दी गयी थी.सवाल मानहानि का था.थानेदार यह जानते हुए भी कि आरोपी बेकसूर है कुछ नही कर सकता था.आरोपी को मुजरिमों की कोठरी मे डाल दिया गया.वह एक पतली सी डायरी निकालकर लिखने लगा -"इन चाहर-दिवारी के बीच मेरे शरीर को कैद कर दिया गया है,लेकिन मैं निडर होकर सच चाहे जैसा भी हो,लिखुंगा.मेरे विचार अभी भी आजाद हैं....... और वह थानेदार आजादी की सांस ले रहा है.उसे आत्म-ग्लानि हो रही है. वह डरा हुआ है और गलती करने के लिये बाध्य है.वह आजाद है लेकिन उसके विचारों को कैद कर दिया गया है.पता नही कैदी मैं हूं या वह थानेदार.
6 comments:
thik hai.nice
.... बहुत सुन्दर,बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!
ऐसा भी होता है. सिस्टम में ऐसे लोग भी होते हैं जिनके सहारे ही इमानदारी और कर्तव्यपरायणता जिन्दा है.
धन्यवाद झा साहब.
सुंदर कटाक्ष.
nice.
बिलकुल सही कहा है आज की व्यवस्था पर अच्छा कटाक्ष है। शुभकामनायें
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