Monday, November 29, 2010

मैं,मेरी श्रीमतीजी और.............भाग-१३ (व्यंग्य)

गुस्से से ही सही मेरे हिसाब से डाक्टर साहब ने दवा बता ही दिया था. मैं खुशी से उछलते हुए वापस आने लगा. तभी डाक्टर साहब बोले-----"ज्यादा उछलो मत. मैं अपनी पत्नी पर सभी विषाणु और विष विरोधी दवाओं का प्रयोग कर चुका हूं. इससे मर्ज और बढ ही जाता है.". क्षण भर में ही मेरी खुशी गहरे दुख में तब्दील हो गयी. मैं भाव विभोर होकर सासू मां की वह कविता गाने लगा---दिवाली नागिन चंद्रमा

दिन प्रकाश आग

शाम को परेशान होकर चुप-चाप घर आया तो श्रीमतीजी ने पूछ ही दिया---" कहां घूम रहे थे तीन घंटे से ?" मेरे मुंह से सिर्फ़ इतना निकल पाया---"वैसे ही ".तभी सासूमां ने श्रीमतीजी के कानों में हल्की सी फ़ूंक मारी. मैं सिर्फ़ "दिमाग" शब्द ही सुन पाया. उस शब्द के सफ़िक्स और प्रीफ़िक्स के बारे में अनुमान लगाकर सोच में पङ गया.



कुछ देर के बाद साबूदाने जैसी होम्योपेथिक दवा की गोलियां बिना गिने हुए खाकर सो गया. ऐसे समय में जब काफ़ी टेंशन में होता हूं होम्योपेथिक दवा ही लेता हूं क्योंकि होम्योपेथिक चिकित्सा यदि स्वास्थ मे सुधार नहीं लाती तो बिगाङती भी नहीं है. कहते हैं कोम्युनिज्म की तरह होम्योपैथ भी रसिया, जर्मनी और चायना से भारत आया और इसका प्रभाव भी एक जैसा ही है. एक ने देश की राजनीति को मारा तो दूसरे ने आम आदमी के स्वास्थ को कभी सुधरने नहीं दिया. तभी तो विपक्ष की पार्टी विशुद्ध भारतीय आयुर्वेदिक लक्ष्मण बुटी खाकर राम-लक्ष्मण के मंदिर बनाती फ़िरती है और सत्ताधारी दल इटली से मंगाकर मंहगे एलोपेथिक दवा खा-खाकर देश चला रही है.जिस सिस्टम को लकवा मार चुकी है उसी पोलियो की खुराक पिला रही है. छोटे- छोटे घाव को भी ओपरेशन से ही ठीक करती है. पहले छोटा ओपरेशन फ़िर बङा ओपरेशन. यदि मरीज थीक नहीं हुआ तो बिमारी के बदले रोगी को ही उपर पहुंचा देती है. आजकल देश में ऐसी ही इटालियन एलोपेथी चल रही हैं.



लेकिन मेरी समस्या दूसरी थी. यह राष्ट्रीय होते हुए भी घरेलू समस्या थी.जबकि मंहगाई, बेरोजगारी, जमाखोरी, मिलावट...आदि घरेलू समस्या भी राष्ट्रीय पहचान बना चुकी है. खैर मेरे लिये तो मेरी पत्नी के कानों में पङनेवाली सासू मां की फ़ूंक सभी राष्ट्रीय समस्याओं से भी जटिल थी.लेकिन चिंतन के सिवा कोई रास्ता भी नहीं बचा था. मेरी आत्मा रो-रोकर कह रही थी कि शिघ्र ही मेरे ससुरालवालों के चलते मेरे जीवन में भू-चाल आनेवाला था.तभी अचानक मेरे सामने पङी टेबुल हिलने लगी----"कितनी देर से चिल्ला रही हूं कहां खोए रहते हो..?"-----श्रीमतीजी की रोबदार आवाज ने भूचाल तो ला ही दिया था. अब भूमिगत होने तक ऐसे भूचाल तो आते ही रहेंगे. लगता है जिस दिन शिव-लिंग के समक्ष विवाह किया उसी दिन ब्रह्माजी ने श्वान-लिंग से मेरा भाग्य लिखा था.न न न...ब्रह्माजी ब्रह्मचारी होकर ऐसे गिरे हुए गृहस्थ जीवन की कल्पना कैसे कर सकते हैं ?. हो सकता है किसी कुत्ते के साथ मेरा भाग्य लेख अदला-बदली हो गयी हो. तभी तो विवाहित होते हुए भी कुत्तों सा जीवनजी रहा हूं और कुत्ते जन्नत की सैर कर रहे हैं.



क्रमशः

4 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

'देखन में छोटे लगें,घाव करें गंभीर'

बातों बातों में आपने, चलाया गहरा तीर

सादर

vijai Rajbali Mathur said...

एक साथ कम्युनलिज्म ,कम्युनिज्म और कैपिटलिज्म पर सकारात्मक प्रहार कर दिया व कोई आह भी न कर सका.

ZEAL said...

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आजकल देश में ऐसी ही इटालियन एलोपेथी चल रही हैं....

गज़ब का व्यंग !एक ही लेख में देश, विदेश , राजनीति , चिकित्सा , भ्रष्टाचार और सास का अत्याचार , सब पर कलम चला दी ।
बधाई हो !

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Urmi said...

आपकी टिपण्णी और उत्साह वर्धन के लिए शुक्रिया!
वाह! क्या बात है! बहुत ही बढ़िया, ज़ोरदार और धमाकेदार व्यंग्य किया है आपने जो काबिले तारीफ़ है ! उम्दा पोस्ट!