तारे गिरकर ही मिट्टी में मिल जाया करते हैं
मंहगे सोने चांदी के ही तो भाव गिरा करते हैं
दुख - दर्द भरी आंखें ही दया की गंगा होती है
दुख में जीनेवालों के ही बुरे-दिन फ़िरा करते हैं
रात की काली चादर पर चांद ही तो सोता है
नागिन सी कारी बदरी से सूर्य घिरा करते हैं
अंधियारों में प्रकाश की किरणें दिख जाती हैं
हरियाली झङ जाते ही पेंङों को विरां करते हैं
बहादुर ही तो सरहद पर मरकर मिट जाते हैं
कायर मिलकर क्रांतिदूत को बे-सिरा करते हैं
14 comments:
वाह..
वास्तविकता के काफी करीब आपकी ये कविता...
मेरे ब्लॉग पर..
विश्व की १० सबसे खतरनाक सडकें.... ...
बिलकुल सही बातें कही हैं .धन्यवाद.
... vaah vaah ... kyaa baat hai !!!
बहादुर ही तो सरहद पर मरकर मिट जाते हैं
कायर मिलकर क्रांतिदूत को बे-सिरा करते हैं
बहुत खूब !
Bahoot neek aor ramangar sang bhavuk kavita achhi je deshprem ke anubhuti ke sahaj roop sa jinjhkorait samapt nai varan suru hoit acchi... uttam rachna Sarvottam rachnakar/...
कुछ अलग सा नज़रिया लगा, दिलचस्प ... जारी रखिये ....
बिलकुल सही बातें कही हैं
सोच ... अच्छी है
विचार होते रहना चाहिए .
शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया .
यथार्थ के बहुत करीब , एक सुन्दर एवं सार्थक रचना।
बधाई।
बेहतरीन प्रस्तुति!
प्रेमरस.कॉम
दुख - दर्द भरी आंखें ही दया की गंगा होती है
दुख में जीनेवालों के ही बुरे-दिन फ़िरा करते हैं ..
ये ठीक कहा .. जिसने दुःख देखा नहीं उसको सुख का पता भी तो नहीं चल पाता ..
""दुख - दर्द भरी आंखें ही दया की गंगा होती है
दुख में जीनेवालों के ही बुरे-दिन फ़िरा करते हैं...."
आप जो भी लिखते हैं,सच ही कहा करते हैं
शायद इसीलिए आप को,हम भी पढ़ा करते हैं.
वाह... नया नजरिया देने का शुक्रिया... आभार...
बहुत खूब .....
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