मेरी सासू मां एक दो दिनों में पधारनेवाली हैं. जिस तरह ससुरजी एक्स्ट्रा-ओर्डिनरी हैं उसी तरह वह भी युनिक हैं.सारे गुणों से लबालब भरी हुई हैं. साक्षात देवी का स्वरुप---सर्व गुण सम्पन्न. बस एक ही कमी है जिससे उनके आगमन पर खुशी के बदले डर बना हुआ है. वह किसी नागिन की तरह मेरी श्रीमती जी के कानों में फ़ूंक मारा करती हैं. वह सचमुच मेरे लिये मातृस्वरुपा साक्षात मां लक्ष्मी हैं यदि अपनी बेटी के कानों मे विषैला फ़ूंक डालना बंद कर दें.स्वभावतः वह डंक नहीं मारती और फ़ूंक भी मेरी श्रीमतीजी के लिये कर्ण-प्रिय ही होता है और उनके इस गुण ने मेरे कानों की श्रवन क्षमता भी बढा दिया है.......लेकिन उनकी फ़ूंक के विषैले तत्वों को श्रीमतीजी के कानों की जाली छान नहीं पाती. स्त्री-गुण के कारण भावुक बातें औरतों के दिमाग में नहीं जाती सीधे नोन-रिटर्न वाल्व से होकर दिल में जमा हो जाती है. वही बातें उनकी अनुपस्थिति में श्रीमतीजी के मुखद्वार से निकलकर मेरे जीवन में भू-चाल लाती है. मानो भूखा शेर मांद से निकल रहा हो और शिकार यानी मैं सामने होऊं.
अन्यथा उनमें तो गुण ही गुण हैं. आप यूं समझिये वह मेरे लिये सास नहीं सांस है, क्योंकि वह जब तक जिन्दा हैं मेरी सांस चल रही है. खुदा न खास्ता यदि किसी दिन मेरे भाग्य से मेरी सास की सांस बन्द हो गयी तो मेरी सांस भी बंद कर दी जायेगी. क्योंकि जहां मेरी सारी उपलब्धियों का श्रेय मेरी श्रीमतीजी को दी गयी अच्छी शिक्षा और सुविधा के रुप में मेरी सासू मां को दिया जाता है वहीं किसी भी छोटी या बङी घटनाओं का जिम्मेदार मुझे ठहराया जाता रहा है. दूसरी बात मेरी सास सदा के लिये दुनियां के बोझ को हल्का कर प्रस्थान कर जायें यह जीवन का सत्य होते हुए भी मेरी श्रीमतीजी के लिये अकल्पनीय है. वह कभी भी बर्दास्त नहीं कर पायेगी. वह राजी-खुशी देश के इतिहास में पहली बार अपनी मां के लिये सती होने का गौरव हासिल करगी......और एक ही साथ सास और पत्नी दोनो से छुटकारे की खुशी मैं नहीं सह पाउंगा. मैं तो समझुंगा कि मानो मेरी किसी व्यन्ग्य रचना के लिये राष्ट्रीय स्तर का कोई अवार्ड मिल गया हो.
चुंकि सास हैं तो आश है और तभी मेरी सांस चल रही है.......हां तो उनकी फ़ूंक के बारे मे बात कर रहे थे. उनमें सारे गुणों के होते हुए भी उनकी फ़ूंक से डरता रहता हूं.बाधा, भूत-प्रेत,चोर-डकैत, पुलिस, नेता...किसी से नहीं डरता पर पत्नी के कानों में मेरी सासू मां के मीठे फ़ूंक से डर जाता हूं.यह बहुत ही अनोखा मामला है. यह मामला मेरी नजर मे उसी दिन प्रकाश में आ गया था जिस दिन मेरी शादी हुई थी. शादी के दिन ही उनकी फ़ूंक इतनी मधुर थी कि पंडितजी के पढे सारे श्लोक हवा में ही रह गये. लग रहा था पंडितजी शादी नहीं कर्मकांड करवा रहे हों. मंत्रों के जरिये किये जानेवाले कसमें वादे बनने से पहले ही टूट गये.
पहले कई दफ़े उनकी पूरी बातें सुनाई नहीं पङती थी तो जो भी शब्द सुनता था उसे कविता की तरह ब्लोग पर टीप आता था. उसमे टिप्पणियों की भरमार होती थी.उदाहरन देना सही होगा अन्यथा आप लोग विश्वास ही नहीं करेंगे.जिस मर्द पर पत्नी और सास विश्वस न करते हो उनपर आप विश्वास करें भी तो कैसे.उदाहरण प्रस्तुत है------
तेरा भाई क्लर्क...
वाशिंग मशीन, टी.वी, फ़्रीज
दामाद्जी अधिकारी
फ़िर भी पावर सीज
सूखी रोटी
ईमानदार
याचना,चिल्लाना ,जबरदस्ती
बेकार
धिक्कार
बाहरी मुद्रा स्वीकार
तभी प्यार, नमस्कार
जब भ्रष्टाचार.
क्रमशः
11 comments:
बहुत खूब अरविन्द जी!
वैसे मैंने एक बार एक सज्जन के मुख से सास और बहू की परिभाषा सुनी थी.उनके अनुसार सास वो है जो बहू को सांस न लेने दे और बहू वो है जो सास को सांस न लेने दे.लेकिन यहाँ तो कहानी ही कुछ और है...:))
Ji han aaj kal yahee ulta rivaaz chal raha hai ki maen betion ke parivaar me hastchhep kartee hai aur gadbad ho jaatee hai.vyangy ke maadhyam se vartman saamajik vyvastha per prakash hai yeh.
बहुत ही उमदा व्यंग है। बधाई।
.........बहुत खूब अरविन्द जी
कहीं सासू माँ को खबर हो गयी तो मुश्किल होगी। वैसे लिखा आपने सोलह आने सच है ।
यह कथा वैसे सोलह आना सच है लेकिन आपके संदर्भ में एकदम झूठ है। झूठ इसलिए कि यदि आपके ऐसी सास होती तो आपकी इतनी हिम्मत नहीं होती कि आप ऐसा लिख सके। तब तो आप रात को दिन और दिन को रात ही बताते। हम तो भाई घर-घर ऐसी कहानी देख रहे हैं।
अरविंद भाई, आपकी लेखनी में गजब की धार है।
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मिलिए तंत्र मंत्र वाले गुरूजी से।
भेदभाव करते हैं वे ही जिनकी पूजा कम है।
... bahut sundar ... !!!
hari oum.
your satire emits the odour of deep hatred and irritation about the relationship talked about here.overall it touched the heart in the way the writer felt about his relationships and waved disturbed current in my heart.
oum
पुस्तक प्रकाशन की बधाई
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें अरविन्द जी
ार्विन्द जी अजित जी ने सही कहा है। या तो सासू माँ नही हैं या फिर वो कम्प्यूटर मे आपका ब्लाग पढना नहीं जानती। उम्दा व्यंग के लिये बधाई।
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