Wednesday, November 24, 2010

मंहगे सोने चांदी के ही तो भाव गिरा करते हैं

तारे गिरकर ही मिट्टी में मिल जाया करते हैं

मंहगे सोने चांदी के ही तो भाव गिरा करते हैं


दुख - दर्द भरी आंखें ही दया की गंगा होती है

दुख में जीनेवालों के ही बुरे-दिन फ़िरा करते हैं


रात की काली   चादर पर चांद ही तो सोता है

नागिन सी   कारी बदरी से   सूर्य घिरा करते हैं


अंधियारों में प्रकाश की   किरणें दिख जाती हैं

हरियाली झङ जाते ही पेंङों को विरां करते हैं


बहादुर ही तो सरहद पर मरकर मिट जाते हैं

कायर मिलकर    क्रांतिदूत को बे-सिरा करते हैं

14 comments:

Anonymous said...

वाह..
वास्तविकता के काफी करीब आपकी ये कविता...
मेरे ब्लॉग पर..
विश्व की १० सबसे खतरनाक सडकें.... ...

vijai Rajbali Mathur said...

बिलकुल सही बातें कही हैं .धन्यवाद.

कडुवासच said...

... vaah vaah ... kyaa baat hai !!!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहादुर ही तो सरहद पर मरकर मिट जाते हैं

कायर मिलकर क्रांतिदूत को बे-सिरा करते हैं

बहुत खूब !

Devesh Jha said...

Bahoot neek aor ramangar sang bhavuk kavita achhi je deshprem ke anubhuti ke sahaj roop sa jinjhkorait samapt nai varan suru hoit acchi... uttam rachna Sarvottam rachnakar/...

Majaal said...

कुछ अलग सा नज़रिया लगा, दिलचस्प ... जारी रखिये ....

संजय भास्‍कर said...

बिलकुल सही बातें कही हैं

daanish said...

सोच ... अच्छी है
विचार होते रहना चाहिए .
शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया .

ZEAL said...

यथार्थ के बहुत करीब , एक सुन्दर एवं सार्थक रचना।
बधाई।

Shah Nawaz said...

बेहतरीन प्रस्तुति!

प्रेमरस.कॉम

दिगम्बर नासवा said...

दुख - दर्द भरी आंखें ही दया की गंगा होती है
दुख में जीनेवालों के ही बुरे-दिन फ़िरा करते हैं ..

ये ठीक कहा .. जिसने दुःख देखा नहीं उसको सुख का पता भी तो नहीं चल पाता ..

Yashwant R. B. Mathur said...

""दुख - दर्द भरी आंखें ही दया की गंगा होती है

दुख में जीनेवालों के ही बुरे-दिन फ़िरा करते हैं...."


आप जो भी लिखते हैं,सच ही कहा करते हैं
शायद इसीलिए आप को,हम भी पढ़ा करते हैं.

POOJA... said...

वाह... नया नजरिया देने का शुक्रिया... आभार...

अंजना said...

बहुत खूब .....