तुम्हारे कामुक वक्षों को
मेरे कर्मठ हाथों ने
कभी श्पर्ष नहीं किया.
न ही मदहोश कर देनेवाली
तुम्हारी होठ
मेरे जीवन-प्रवाह को
चूम सकी.
तुम्हारा यौवन
मेरे निकट आकर भी
मेरे पुरुषार्थ को
भोग न सका.
क्योंकि
जीवन का प्रति-पल
सुखद संभोग की तरह
खुशियों से भरा था.
फ़िर उसी जीवन के लिये
बांध लो मेरे जिस्म को
अपनी वफ़ादार बांहों से
क्षण भर के लिये
रोक दो मेरी सांसें
मेरे साथ लेट जाओ
नंगी जमीन पर
मेरे साथ संभोग कर
मुझे निष्काम कर दो.
....
....
मृत्यु,
मेरा आलिंगन करो.
11 comments:
vaah bhaai arvind! yadi 'mrityu', jo atal satya hai yah jaankar bhi hm bhaybheet hote hain, ko kuchh is andaaj me gale laga paayen to..... rachna maarmik
कविता की ज्यादा समझ तो नहीं है पर पढ़कर अच्छा लगा
अच्छी पंक्तिया है .....
http://oshotheone.blogspot.com/
विचारणीय प्रस्तुती ..काम और मृत्यु जीवन का आरम्भ और अंत है अतः इन दोनों के बिच में नैतिक चरित्र रुपी संतुलन अति आवश्यक है ...जिसका आज लोगों के जीवन में ज्यादातर अभाव ही दीखता है ..कारण कई हैं जैसे महिलाओं में अर्धनग्नता के प्रति लगाव का बढ़ना ,मिडिया द्वारा अर्धनग्नता को बेचकर अपना पेट भरना ,भ्रष्टाचार का पूरी शिक्षा व्यवस्था को निगल जाना इत्यादि ...
... behatreen rachanaa !!!
hmmm...cool !
Sab khairiyat to hai naa.
Thoda sehat par bhi dhyan de dijiy
sab comments ko maaro goli, baki logo ki tareef se fool mat jaao aur tarkeshwar giri ji ke comments pe sabse pahle dhyaan do raaja.... baki khud samajhdar ho tum aisa hamein vishwas hai, naa ho samjhdar to bataa do....
कोशिश कर रहा हूँ समझने के लिए ।
@tarkeswar giri and anonymous(as i know you)....main prasansa se fool jaane ke liye nahi likhta....our n hi criticise se paresaan hotaa hun....main samajhdaar nahi hun....samajhdaari seekh rahaa hun...poetry se sehat kaa koi taaluk nahi hotaa...it is the imagination of reality.......vasie this piece of poetry is one of the best of my poetry.........mere blog par aane ke liye dhanyavaad.
बहुत सुन्दर और शानदार रचना लिखा है आपने! बहुत बढ़िया लगा ! उम्दा प्रस्तुती!
very nice.
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