Monday, March 8, 2010

क्रान्तिदूत की चुनौती

"खायी है ईंसानों ने टक्कर ऎसी कि हर दीन के मांथे से लहु जारी है".लेकिन एसी टक्कर क्यों कि ईंसान तडपकर अपनी जान दे दे?भूख और लाचारी से तडपते हुए बार-बार ईश्वर को याद करे,खुदा कि फ़रियाद करे और बदले मे मौत मिले तो ईंसान क्या करे?.किसी के मां-बहन की ईज्जत लूटी जाये,वह धैर्य रखे और न्यायालय पर यकीन करे फ़िर उसके बलात्कार का मजाक उडाकर उसे झुठा साबित कर दिया जाये,तो ईंसान क्या करे?पुर्वजों के नक्से-कदम पर जिंदगी जिये,ठाकुरों की सेवा करे,फ़िर अचानक किसी छोटी सी भूल के लिये उसके सारे पुर्वजों को गाली देकर उसे हरामी माना जाये तो ईंसान क्या करे?जब डाक्टर ईलाज के बदले चोरी से किडनी बेच दे,पुलिस धक्के मारकर दूर फ़ेंक दे और कोई बहुत बडा आदमी किसीके ईशारे से रगों मे जहर ठूस दे तो ईंसान क्या करे?देवी मां के मंदिर मे उसे जाने न दिया जाये और यदि वह चला जाये तो उसे.................ऊफ़......?

..................खुद को खुदा कहनेवाले, परम सत्य, सर्व-शक्ति-संपन्न,सर्वव्यापी विधाता यह सारे प्रश्न क्रांतिदूत तुमसे पुछता है. आज तक तुमनें इन प्रश्नों के जवाब नहीं दिये हैं. क्रांतिदूत के पास इन प्रश्नों के जवाब हैं.वह तुम्हारी शक्ति का सम्मान करता है पर तुम्हारे न्याय को नहीं मानता.और वे लाचार जिन्होंने तुम्हारी पत्थर की मुर्ति को कबका उथाकर फ़ेंक दिया अब क्रांतिदूत का सम्मान करता है.

इसी बात का जलन है तुम्हें.इसलिये उन लाचारों कि सहायता के लिये मैं जब भी हाथ बढाता हूं तुम अपने चमचों(ईंसानों के वेश में शैतान)के जरिये मेरे हाथों को काटने की कोशिस करते हो जब परीक्षा भी तुम ही लेते हो,जांच भी स्वयं करते हो और परिणाम भी खुद सुनाते हो तो मैं जानता हूं कि मेरे खिलाफ़ तुम्हारा फ़ैसला क्या होगा?तुम तो मेरे साथ भी वही करोगे जो कई क्रांतिदूतों के साथ तुमने पहले भी किया. कुछ पल के लिये शायद तुम जीत भी जाओगे.

..............लेकिन मैं लाचारी से हुई उनकी मौतॊं पर रोऊंगा.अन्याय के खिलाफ़ उठने वाले स्वरों को आवाज दुंगा.जब कोई बच्चा फ़ुटपाथ पर दुध के लिये रोते हुए दम तोड देगा तो मैं आंसु भी बहाऊंगा.............पर मेरी चुनौती है तेरी पत्थर की मुर्ति को फ़ेंकने के बाद जो खाली जगह बचा है वहां मेरे मरने के बाद मेरी तस्वीर लगेगी.

7 comments:

दिगम्बर नासवा said...

ये सच है की वो पत्थर की मूरत है ... पर उसकी चाल बहुत धीमी है ... उस मूरत से कैसा आक्रोश ...
आपका लिखा व्यवस्था के प्रति गहरा क्षोभ दर्शाता है ... जो उचित है ...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

Isme bhagvan ka kahin dosh nahi hai.
Vo sabhi sansarik bandhnon se pare hai,
aapka akrosh vyavastha ko lekar hai,
aur vah insano ke hath me hai.
galtiyan insan khud karta hai aur dosh
bhagvan ko deta hai. yah sahi nahi hai.
bhagavan patthar me samahit nahi hai.
vo hamare dil me rahta hai. jis din dil se
nikal denge us din patthar ki murti bhi sirf
ghat ka patthar bankar rah jayegi.
isliye manvata ko bachane ke liye insan me
karuna jagani chahiye. anyatha fir koi bhagavan ka bhesh banakar thag hame lutne chale aayega.
bahut hi achchhi post.

aapko shubhkamnayen arvind ji.

कडुवासच said...

....जब कोई बच्चा फ़ुटपाथ पर दुध के लिये रोते हुए दम तोड देगा तो मैं आंसु भी बहाऊंगा....
....बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति!!!!

डॉ महेश सिन्हा said...

"तेरी पत्थर की मुर्ति को फ़ेंकने के बाद जो खाली जगह बचा है वहां मेरे मरने के बाद मेरी तस्वीर लगेगी"

???

एक तरफ आप भगवान के विरोध में हैं दूसरी ओर अपनी फोटो उसकी जगह लगाना चाहते हैं ?

निर्मला कपिला said...

ये कैसा आक्रोश? समझ नही आया। जोश मे होश खोना सही नही। तो क्या तुम भगवान से भी उपर हो? तो करो सब का कल्याण । बदल दो सारी व्यवस्था देर किस बात की। भगवान की जगह अपनी फोटो लगा कर शायद भगवान बनना चाहते हो? विरोधभास है बातों मे। शुभकामनायें

arvind said...

krantidut vykti nahi balki ek vichar hai jo pratyek hriday me hai our vah patthar ki murty ko bhagavaan nahi manata.

bhagavaan ke jis swarup ki pujaa ki jaati hai mai usaka virodhi hun.

kshama said...

Krodh uchit hai,lekin gantantr me hamare chune log hain...ham bhi zimmedaar hain...nyay vyavastha amulagr badal mangatee hai,jo ham hi kar sakte hain,PIL ke zariye, ekjut hoke..

Ramnavmi ki anek shubhkamnayen!