सुरज की किरणों में हो तुम,
सागर की लहरों में हो तुम,
तुम हो जग की सुन्दरता में,
तुम बसती हो श्वासों में.
हर पुष्प में तेरी महक है,
पंक्षियों में तेरी चहक है,
तेरी ध्वनि है कोयल की कूहों में,
तुम बसती हो श्वासों में.
हो जीवन का आदि-अंत,
सुमधुर और सुन्दर बसंत,
तुम हो मेरी प्यासों में,
तुम बसती हो श्वासों में.
तुम हो दिवस की प्रातःवेला,
निशा रात्रि का चंद्र अकेला,
तुम हो गोधुलि की सांझों में,
तुम बसती हो श्वासों में.
पेङों की हरियाली हो तुम,
मदिरा की मोहक प्याली हो तुम,
तुम हो रक्त के कण-कण में,
तुम बसती हो श्वासों में.
सरिता की कलकल धारा हो तुम,
मांझी मैं, किनारा हो तुम,
तुम पवन के प्रवल प्रवाह में,
तुम बसती हो श्वासों में.
11 comments:
मदिरा की मोहक प्याली हो तुम,
bahut achi kavita he bhai saheb
http://kavyawani.blogspot.com
shekhar kumawat
bhaavpooran rachna ke liye badhaaii
तुम हो दिवस की प्रातःवेला,
निशा रात्रि का चंद्र अकेला,
तुम हो गोधुलि की सांझों में,
तुम बसती हो श्वासों में.
.... शानदार रचना,बधाई!!!!
बहुत खूब ... प्रेम की अपनुपम अभिव्यक्ति है ...
बेहद लाजवाब है ...
मोहक, मादक और बहुत खूबसूरत रचना
हर पुष्प में तेरी महक है,
पंक्षियों में तेरी चहक है,
तेरी ध्वनि है कोयल की कूहों में,
तुम बसती हो श्वासों में।
पेङों की हरियाली हो तुम,
मदिरा की मोहक प्याली हो तुम,
तुम हो रक्त के कण-कण में,
तुम बसती हो श्वासों में।
बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ! दिल को छू गयी आपकी ये मनमोहक और भावपूर्ण रचना! बहुत बढ़िया लगा! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
Klisht evan shudh Hindi padke atyant sukh ki anubhooti hui!
Tum ho meri pyaason mein,
Tum basti ho shwaason mein!!
Adbhut! Sundar!
सरिता की कलकल धारा हो तुम,
मांझी मैं, किनारा हो तुम,
तुम पवन के प्रवल प्रवाह में,
तुम बसती हो श्वासों में.
छंदबद्ध सुंदर रचना .....!!
bahut hi bhawpurn rachna
तुम हो दिवस की प्रातःवेला,
निशा रात्रि का चंद्र अकेला,
तुम हो गोधुलि की सांझों में,
तुम बसती हो श्वासों में.
Wah! Kya gazab likhte hain aap!
जहाँ-जहाँ भी दृष्टि पड़े,
बस तुम ही पड़ो दिखाई ... ... .
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बहुत बढ़िया!
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