Wednesday, October 19, 2011

कसौटी



पाप निकलता ही है.

पुण्य बचता ही है.

धर्म बहता ही है.

कर्म करता ही है.

गुण चमकता ही है.

बुराई छलकता ही है.

देखो कसता कसौटी पर

काल अटकता नहीं है.

7 comments:

सदा said...

वाह ...बहुत बढि़या।

ASHOK BAJAJ said...

अच्छी तुकबंदी के साथ सुन्दर अर्थपूर्ण कविता , बधाई !

संजय भास्‍कर said...

प्रभावशाली प्रस्तुति
आपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें….!

संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर रचना , बधाई.



कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .

SANDEEP PANWAR said...

बेहतरीन प्रस्तुति।
शानदार

ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU' said...

सच !

ओ3म तत सत आमीन !


facebook पर भी खाता खोलें यदि नहीं है .वैचारिक क्रान्ति को आगे बढ़ाने मेँ इण्टरनेट का योगदान कम नहीं है .प्रसार आवश्यक है .

in facebook सर्च कर इसे पसंद करेँ .

संजय भास्‍कर said...

सुंदर प्रस्तुति