सच नकाब में होता है , यहां नहीं नंगा कोई.
सबका दिल घायल घायल यहां नहीं चंगा कोई.
सच्चे प्यार - मोहब्बत पर नफ़रतों की गश्ती है.
यह इंसानों की बस्ती है यह इंसानों की बस्ती है.
बङे-बङे महलों के आगे सङकों पर बच्चे सोते हैं.
महलों में कितनी बेचैनी है ,वहां भी सारे रोते हैं.
रोटी बिकती मंहगी है पर बंदूकें काफ़ी सस्ती है.
यह इंसानों की बस्ती है यह इंसानों की बस्ती है.
सबके अपनें जात बने हैं सबका अपना मजहब है.
न कोई अपना कोई पराया , खुदी से ही मतलब है.
रुपयों में बिकता जिस्म है रुपयों से ही मस्ती है.
यह इंसानों की बस्ती है यह इंसानों की बस्ती है.
घर के दुधिया रौशन में अब चांद नहीं दिखता है.
मन के कारे बदरी में अब तो सूरज भी छिपता है.
नहीं जानता एक दिन सबकी डूबनेवाली किश्ती है.
यह इंसानों की बस्ती है यह इंसानों की बस्ती है.
6 comments:
रोटी बिकती मंहगी है पर बंदूकें काफ़ी सस्ती है.
यह इंसानों की बस्ती है यह इंसानों की बस्ती है.
very true Arvind ji .great expression .thanks
बङे-बङे महलों के आगे सङकों पर बच्चे सोते हैं.
महलों में कितनी बेचैनी है ,वहां भी सारे रोते हैं.
रोटी बिकती मंहगी है पर बंदूकें काफ़ी सस्ती है.
यह इंसानों की बस्ती है यह इंसानों की बस्ती है.
bahut sahi...
कल 15/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
दमदार ...कटु सत्य कहती रचना ...
सोच में डूब गया मन ...
सुंदर अभिव्यक्ति ...
एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!
बङे-बङे महलों के आगे सङकों पर बच्चे सोते हैं.
महलों में कितनी बेचैनी है ,वहां भी सारे रोते हैं.
रोटी बिकती मंहगी है पर बंदूकें काफ़ी सस्ती है.
यह इंसानों की बस्ती है यह इंसानों की बस्ती है.
बहुत ही बढ़िया,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
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