हाल ही में हुए बिहार के चुनाव परिणाम निश्चय ही विकास के लिये वोट की कहानी कहती है. यह परिणाम बिहार कि लोगों की समझदारी का पर्याप्त सबूत भी देती है.इस बात का कहीं कोई विरोधाभास नहीं है कि मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार ने भाजपा के सहयोग से विगत पांच वर्षों में अच्छा कार्य किया है. इसी बात को मानते हुए जनमत उनके पक्ष में रही...लेकिन एक दूसरी बात जो बाहर आयी है वह यह है कि केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी अर्थात कांग्रेस को बिहार की जनता ने नकार दिया है. बिहार की जनता ने किसी पार्टी विशेष को वोट न देकर "सुशासन" के पक्ष में अपना मत दिया. यही बात देश की राजनीति को एक नयी दिशा देगी.
बहुत हद तक केन्द्रिय सरकार भ्रष्टाचार, मंहगाई, बेरोजगारी, नक्सलवाद,आतंकवाद, गरीबी आदि सभी समस्याओं को हल करने में असफ़ल रही है. वहीं इन मुद्दों पर विपक्ष भी सफ़लतापूर्वक अपनी भूमिका का निर्वाह नहीं कर पा रही है. विशेषकर भ्रष्टाचार तो दीमक की तरह लगता है पूरे देश को खोखला कर के ही दम लेगी. इस मामले में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की भूमिका संदेहास्पद लगती है.
२० वीं सदी की बात करें तो महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानन्द नें तत्कालीन समाज के निर्माण में अपनी भूमिका का जो निर्वाह किया था उसे कोई भी भारतीय कैसे भूल सकता है. राजनीति के शिखर पर होते हुए भी बापू कभी भी राजनीतिज्ञ नहीं रहे उसी तरह स्वामी विवेकानन्द राजनेता नहीं होते हुए भी जनमानस के बीच ख्याति प्राप्त युवा के रूप में प्रतिष्ठित बने रहे. इन दोनो व्यक्तित्वों की यह खाशियत थी कि वे निस्वार्थ भाव से जनमानस के प्रति समर्पित रहे और उन्हें तदनुरुप सम्मान भी मिलता रहा.
आज परिस्थितियां उतनी प्रतिकूल नहीं है...पर हां यदि यूं ही नीतिगत भूलें होती रही तो स्थिति बहुत ज्यादा बिगङ भी सकती है. ऐसे में जब सत्ता-पक्ष और विपक्ष दोनों के बीच का अन्तर काफ़ी कम लग रहा है और दोनों जनता जनार्दन के लिये अग्राह्य हो रहे हैं तो निश्चय ही एक आशा की किरण भी दिख रही है. भले ही यह आशा की किरण मीडिया से दूर आस्था और संस्कार चैनल तक ही सिमटी हुई दिख रही है.... लेकिन है वह आशा की किरण जिसके पास भ्रष्टाचार , बेरोजगारी, साम्प्रदायिकता , नक्सलवाद, गरीबी...आदि सभी समस्याओं के समाधान के साथ-साथ राष्ट्र-गौरव ,स्वाभिमान और स्वास्थ की भी चिंतायें है. वह गांधी की तरह निस्वार्थ और विवेकानन्द की तरह मेधावी और तेजपूर्ण है.....हां वह महापुरुष है बाबा रामदेव....शायेद देश की आशा...बाबा रामदेव.
13 comments:
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अब तो बाबा रामदेव में ही आशा की किरण दिखती है।
He is the only hope. Let's see !
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जो उदहारण आपने पेश किये हैं ...उनका कोई सानी नहीं ......परन्तु बाबा रामदेव जी को अभी बहुत कुछ करना बाकि है ...देखते हैं भविष्य में उनके प्रयास कितने सार्थक हो पाते हैं ....अभी आशा की किरण बाकी है ...शुक्रिया
आशा तो लगा बैठते हैं पर बाबा खरे उतारें यही सोच बाकी है
बाबा रामदेव जी को अभी बहुत कुछ करना है|यही आशा की किरण बाकी है|
... rajneeti va baabaagiree ... dono alag hi taaseer ke kaam hain ... ab dekhate hain taal-mel kis tarah baithataa hai !!!
अभी आशा की किरण बाकी है
कांन्तिदूत की लेखनी को प्रणाम, बाबा राम देव से देख को बहुत कुछ मिला है और देश से बाबा रामदेव को निश्चित रूप से जिस प्रकार से स्वीकारिता बाबा जी की हो रही है वह फलदायी होगी
मैं नहीं मानता...वो तो पैसे कमाने में लगे हुए हैं...कहीं भी निःस्वार्थ भावना नहीं दिखती...
सामाजिक परिवर्तन हेतु ही ईश्वर ने उन्हे रामसिंग से बाबा रामदेव बनने की प्रेरणा दी।
जब तक कसौटी पर नहीं कसते, तब तक तो आशा है ही।
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साइंस फिक्शन और परीकथा का समुच्चय।
क्या फलों में भी औषधीय गुण होता है?
ख्याल अपना- अपना !
नव वर्ष(2011) की शुभकामनाएँ !
बाबा रामदेव अभी तक तो अनुकरणीय ही लगते हैं, लेकिन असली परख तो तभी होगी जब काजल की कोठरी में उतरेंगे।
अरविन्द जी, आपकी व्यंग्य लिखने की क्षमता अद्भुत है। हँसाते हँसाते ऐसी गहरी बातें लिख जाते हैं कि पूछिये मत। जैसा कि आपने बताया कि उपन्यास रूप में छपवाने की तैयारी है, इंतजार रहेगा। टुकड़ों में पढ़ना उतना आनंद नहीं देता।
नये वर्ष की भकामनायें स्वीकार करें।
आशा है तो जीवन है ... जय हो बाबा राम देव की ..
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