Sunday, December 12, 2010

चांद को थोङी गुमां तो होगी ही.

क्योंकि बैठा है आसमानों पर चांद को थोङी गुमां तो होगी ही.

करती रौशन है वो जमाने को हाल फ़िर खुशनुमा तो होगी ही.



मेरा तो दिल है एक समन्दर सा आग होता नहीं है इस दिल में

उसके दिल में है आग की लपटें फ़िर भी थोङी धुआं तो होगी ही.



खुद से मैं पूछता ही रहता हूं , कितनी चाहत है उसके सीने में

वो तो चुपचाप रहा करती है , आंखों में कुछ जुबां तो होगी ही.



मैं तो खुद पर यकीं नहीं करता फ़िर भी उसपर मुझे भरोसा है

रहती है वो सफ़ेद चादर में , पर दाग भी बदनुमा तो होगी ही.



भीङ में होकर भी कितना तनहा हूं तेरी चाहत ही मेरा साथी है

तू भी रहती अकेली हो घर में , पर कोई रहनुमा तो होगी ही

19 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

वाह!अरविन्द जी...बहुत खूब.

Shekhar Suman said...

वाह...क्या खूब लिखा है....
मेरे नए ब्लॉग पार भी पधारें....

कडुवासच said...

... bahut sundar ... bilkul nayaa andaaj arvind ji ... badhaai !!!

Urmi said...

बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना ! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com

ZEAL said...

तनहा दिल , कोई न कोई रास्ता तो ढूंढ ही लेता है , खुद को व्यस्त रखने के लिए।

संजय भास्‍कर said...

बेहद खूबसूरत नज़्म्…………सारे भाव उमड आये हैं।

Pratik Maheshwari said...

हम्म.. प्यार मोहब्बत.. क्या बात है..
अच्छी प्रस्तुति..

पर एक सुझाव है.. लिखते वक़्त आप लिंगों को ना बदलें.. जैसे गुमां, खुशनुमा जैसे शब्द पुल्लिंग है.. तो उनका उपयोग उसी सन्दर्भ में किया जाना चाहिए..

आभार

कविता रावत said...

भीङ में होकर भी कितना तनहा हूं तेरी चाहत ही मेरा साथी है

तू भी रहती अकेली हो घर में , पर कोई रहनुमा तो होगी ही

...achhe khyal....

Amit Chandra said...

बेहतरीन रचना। आभार

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

चांद को थोङी गुमां तो होगी ही.

अंत में "होगा ही" सही रहेगा।

Mrityunjay Kumar Rai said...

बेहद खूबसूरत

दिगम्बर नासवा said...

मैं तो खुद पर यकीं नहीं करता फ़िर भी उसपर मुझे भरोसा है

जब भरोसा है उस पर तो दाग की बात क्यों .... जुदा ख्याल है आपका ... ..

Urmi said...

आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

Devesh Jha said...

रक्त है कुछ थका थका सा,
फिर भी मृत्यु कि उमंग है,
गलबहियां करती उद्दीप्त सितारों से,
टूटकर चूर होने कि जंग है..

शहद बना है घाव दीमक का,
लहू चाट कर साम्राज्य सो रहा.
निवालें में ज़हर रखकर माँ ने रोटी दी है,
कहती नमक अभी भी गाँधी ढो रहा..

राज्य है या आग का चिंगारी,
थोड़ी सी प्याज के लिए,
गुर्ज़रों कि आवाज़ के लिए,
भींगती बेचारी भारत माँ थर थर,
ख़ाक लिया आज़ादी जब मर रही है नारी...

चुप हो जा, सुन्न कि संसद में शोरगुल है,
अभी मुंबई में था चार,
अब्ब गुजरात भी बीमार,
ये आतंक है या बिमारी...
कोढ़ खुजाने से मिटती नहीं,
बढ़ जाती है लाचारी,
मेरी माँ को दीमक चाट रहा है,
फिर तुक्रों में बाँट रहा है,
छि: मैं बेटा हूँ, जो अभी बी टीवी के खबरों आगे बस लेता हूँ...

दे धुन कि तरंग से तृप्त हो गगन,
फांसी दो अपने हाथों से जो जेल में बंद..
कंचन कि मंजन से पहले, राख मल दो मुखरे पे,
गाँधी बाबा को सोने दो अब के मामूली झगडे पे...

हाथ तलवार ना लेना ना ही हिन्दू या मुस्लिम कहना,
अगर पाप नज़र आये अपने में, सबसे पहले अपनी गर्दन उतार देना..

मर जाओ रे मर जाओ, मेरे दोस्तों अब तो अपनी छोटी दुनिया से निकल कर आओ..
मारेगी ना तेरी मुहब्बत, अगर मर जाए देश तो क्या उल्फत...
देवेश झा
namaskar arvind ji apenek kawita neek aaor ramngar chhal//// ummed achhi apne hamar blog par pahunchab... je achhi,apne kaotau aor follow kene rahiye o nai bain paol rahai ...actually mein hamar e achhi... ek be punah apnek vyangy bahut neek achhi....
dewdevesh.blogspot.com (DWELLING DEW)

Devesh Jha said...

रक्त है कुछ थका थका सा,
फिर भी मृत्यु कि उमंग है,
गलबहियां करती उद्दीप्त सितारों से,
टूटकर चूर होने कि जंग है..

शहद बना है घाव दीमक का,
लहू चाट कर साम्राज्य सो रहा.
निवालें में ज़हर रखकर माँ ने रोटी दी है,
कहती नमक अभी भी गाँधी ढो रहा..

राज्य है या आग का चिंगारी,
थोड़ी सी प्याज के लिए,
गुर्ज़रों कि आवाज़ के लिए,
भींगती बेचारी भारत माँ थर थर,
ख़ाक लिया आज़ादी जब मर रही है नारी...

चुप हो जा, सुन्न कि संसद में शोरगुल है,
अभी मुंबई में था चार,
अब्ब गुजरात भी बीमार,
ये आतंक है या बिमारी...
कोढ़ खुजाने से मिटती नहीं,
बढ़ जाती है लाचारी,
मेरी माँ को दीमक चाट रहा है,
फिर तुक्रों में बाँट रहा है,
छि: मैं बेटा हूँ, जो अभी बी टीवी के खबरों आगे बस लेता हूँ...

दे धुन कि तरंग से तृप्त हो गगन,
फांसी दो अपने हाथों से जो जेल में बंद..
कंचन कि मंजन से पहले, राख मल दो मुखरे पे,
गाँधी बाबा को सोने दो अब के मामूली झगडे पे...

हाथ तलवार ना लेना ना ही हिन्दू या मुस्लिम कहना,
अगर पाप नज़र आये अपने में, सबसे पहले अपनी गर्दन उतार देना..

मर जाओ रे मर जाओ, मेरे दोस्तों अब तो अपनी छोटी दुनिया से निकल कर आओ..
मारेगी ना तेरी मुहब्बत, अगर मर जाए देश तो क्या उल्फत...
देवेश झा

dewdevesh.blogspot.com (DWELLING DEW)

Devesh Jha said...

namaskar arvind ji apenek kawita neek aaor ramngar chhal//// ummed achhi apne hamar blog par pahunchab... je achhi,apne kaotau aor follow kene rahiye o nai bain paol rahai ...actually mein hamar e achhi... ek be punah apnek vyangy bahut neek achhi....
dewdevesh.blogspot.com (DWELLING DEW)

Devesh Jha said...

रक्त है कुछ थका थका सा,
फिर भी मृत्यु कि उमंग है,
गलबहियां करती उद्दीप्त सितारों से,
टूटकर चूर होने कि जंग है..

शहद बना है घाव दीमक का,
लहू चाट कर साम्राज्य सो रहा.
निवालें में ज़हर रखकर माँ ने रोटी दी है,
कहती नमक अभी भी गाँधी ढो रहा.
devesh jha...
shesh hamar blog par...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत गज़ल ...

यहाँ आपका स्वागत है

गुननाम

ZEAL said...

no new post ?...Is everything fine at your end ?