Monday, November 8, 2010

मैं,मेरी श्रीमतीजी और.............भाग-९ (व्यंग्य)

कुछ ही दिन बाद मेरे ससुराल के कुछ अन्य गणमान्य लोगों का मेरे क्वार्टर पर आकर ठहरने का प्रोग्राम बन गया. जल्द ही मेरी सासू मां, साले महोदय और प्यारी सी सालीजी का आगमन होनेवाला था. थोङा सा चिन्तित था. वे लोग जब तक मेरे यहां ठहरेंगे मेरी जिन्दगी भी ठहरी सी हो जायेगी.श्रीमतीजी, ससुरजी और अन्य तीन मिलकर जब पांडव बनेंगे तो उसे मेरे जैस साधारण प्राणी कैसे झेल पायेगा.ये लोग मेरा तो चीर-हरण कर के ही दम लेंगे.

मैं परेशान था पर ससुरजी तो हर मामले में मेरे विपक्ष मे रहने की ठान ही ली है. वह मुस्कुरा रहे थे विश्वकर्मा पूजा मनाने की खुशी का बहाना लेकर. मेरे निकट आकर बैठ गये. वह मेरा लटका हुआ चेहरा एक-टक मुस्कुराते हुए देख रहे थे. फ़िर भी उनके चेहरे से याचक होने की बू तो आ ही रही थी और भले ही मांगनेवाला मुस्कुरा रहा हो महान तो लाचार होकर भी देनेवाला ही होता है. धीरे से आईटम्स जो पूजा के लिये जरूरी थे कि लिस्ट मेरे हाथ में थमा दी. उनके डिमांड की लिस्ट मेरे लिये पिक्चर के क्लाइमेक्स की तरह हुआ करता है. "जिंस पैंट, टी-शर्ट, टोपी, सलवार सूट..?????"---मैं उच्चारण करते हुए पढ रहा था.आइटम्स तो खुद ही ढेर सारे क्वेश्चन मार्क्स पैदा कर रहे थे. ससुरजी की कुशाग्र बुद्धि उन्हें उत्तर के साथ उपस्थित कर दिया----"दामादजी आज का जमाना इडियट्स और दबंगों का है ऐसे में पीला वस्त्र, पीली धोती और मुकुट न ही फ़ोर्मल लगता है और न ही इनफ़ोर्मल.पहले जमाने के कपङों में भगवान विश्वकर्माजी पुराने खयालोंवाले अबनोर्मल लगेंगे". मुझे तो ससुरजी अबनोर्मल लग रहे थे. जी तो कर रहा था कि वैचारिक रुप से उनकी धज्जियां उङा दूं लेकिन सम्मान ही इतना करता हूं कि कुछ भी न बोल पाया.


मैंने श्रीमतीजी से जाकर कहा-----" तुम्हारे पिताजी भगवान विश्वकर्मा जी को जींस और टी-शर्ट पहनाना चाहते है.....अबनोर्मल हो गये हैं " लेकिन एक महान बाप की वीरांगना बेटी यह कैसे बर्दास्त कर सकती थी. वह साउन्ड बोक्स की तरह ओन हो गयी---"पागल तो तुम हो गये हो. वह यदि नये ढंग से पूजा करना चाहते हैं तो हर्ज ही क्या है ? वह नये विचारवाले लोग हैं तुम्हारे जैसे पुराने खयाल के नहीं ".जिस तरह कोंग्रेस की सरकार को कोम्युनिस्ट विना शर्त समर्थन देते हैं उसी तरह वह अपने पिता के पक्ष में हो जाया करती है. मैं अल्पमत का विपक्ष बन जाया करता हूं. विपक्ष की तरह मत के साथ-साथ शांति, समृद्धि, खुशियां और बैंक बएलेन्स भी अल्प होता जा रहा था. काश सत्त पक्ष के गुण-गान के साथ-साथ विपक्ष के दर्द को भी लोग समझते. सत्ता की कुर्सी के इतना निकट होकर भी सत्ता से दूर होना और धीरता के साथ लालच की जीभ को बांधे रखना--आसान नहीं है.

अगले दिन सुबह ससुरजी टिंकू को पूजा करवाने लगे.पहले आवाहन होना चाहिये, मंत्र पढो----" O.. mighty..honourable god of works and your family, i tinku a ten year old child invite you to come here and have respective seats " .मेरे मुंह से तो oh my god निकल रहा था. पूजा इंगलिश में करवायी जा रही थी. देव-भाषा संस्कृत का घोर अपमान और आंग्ल-भाषा से यह प्यार मुझे अच्छा नहीं लगा. श्रीमतीजी सगर्व मुस्कुरा रही थी. उन्हें कुछ कहता तो बुरा मान जाती और खिसियाई बिल्ली की तरह झपट पङती. जब रहा न गया तो ससुरजी का भद्रतापूर्वक विरोध किया----"पूजा संस्कृत में करवायी जाती तो ज्यादा अच्छा होता". कहने लगे---"संस्कृत..?संस्कृत भाषा तो मृतक हो चुकी है. अब तो इंगलिश में ही लाईफ़ है"



अगले भाग में भी विश्वकर्मापूजा जारी रहेगा.              क्रमशः

12 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत बढ़िया अरविन्द जी.....बदलती सोच का आपने बखूबी चित्रण किया है....अगले भाग का बेसब्री से इंतज़ार है!

ZEAL said...

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वीरांगना बेटी का जबरदस्त व्यंगकार पति भी कुछ कम नहीं। पांडव सेर है तो अरविन्द जी आप भी सवा सेर ही हैं। डटे रहिये। बस एक ही बात का डर है , जाने कब वे लोग अंग्रजी से लैटिन भाषा पर आ जायें।

बढ़िया व्यंग !..मजेदार भी।

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कविता रावत said...

..... बदलते सामाजिक परिवेश का सुन्दर चित्रांकन ....
. दीपपर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ

soni garg goyal said...

कई दिनों बाद वापस ब्लॉग जगत का रुख किया है और अच्छा लगा की जल्दी आ गयी आपके व्यंग्य का दूसरा भाग आने से पहले वैसे लाइन कमाल है !!!!!
".जिस तरह कोंग्रेस की सरकार को कोम्युनिस्ट विना शर्त समर्थन देते हैं उसी तरह वह अपने पिता के पक्ष में हो जाया करती है"
जबरदस्त व्यंग्य अध् कर अच्छा लगा !

vijai Rajbali Mathur said...

Vishvkarma pooja ke bahane -bhasha ka tamasha aur Rajneeti ke penchon ko khoob kureda hai aapne .Sateek vyangya hai.

soni garg goyal said...

अध् कर नहीं
पढ़ कर !!!

संजय @ मो सम कौन... said...

डरना नहीं है अरविंद जी बिल्कुल भी, हम हमेशा विपक्ष के पक्ष में रहते हैं:)
वैसे आपके ससुर जी का नये ढंग की पूजा का आईडिया मस्त लगा, दबंगों का है जमाना।
ये सीरिज़ चलती रहे. आखिर भारत पर्वों का देश है।

संजय @ मो सम कौन... said...

और ये दिन, तारीख की सैटिंग सही करिये जनाब, अगला हैप्पी बड्डे तभी पास आयेगा। लगभग साढे तेरह घंटॆ पीछे चल रहे हैं आप।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

जय हो स्वागत है आपका
धार दार व्यंग्य है किश्तों में जारी रहे।

दिगम्बर नासवा said...

समय बदल रहा है ... धीरे धीरे संस्कृत भी लुप्त हो जायेगी ... अछा व्यंग है ..

kavita verma said...

badlte samay aur reeti rivajo par karara vyang...

Devesh Jha said...

just a magic sir! you have a powerful to make laugh with wry and smile, its a thinking which can think to the society...