Monday, August 8, 2011

खुद



खुद ने खुदको किया पराजित

खुद ही खुद से हारा है.

खुद ने साथ दिया खुदको

खुद ने ही खुदको मारा है.



यह खुद की ही थी गर्जी

चलती रही खुद की मर्जी.

गैरों में होती ताकत तो

खुद क्यों खुद का सहारा है.

खुद ही खुद से हारा है.



खुद की एक बात बताता हूं.

यह सारा खेल खुदी का है.

मानो तो खुदा खुद में बैठा

वरना खुद खुद का कारा है.

खुद ही खुद से हारा है.



कई खुदों ने खुद से मिलकर

कहा साथ निवाहेंगे वे.

लेकिन फ़िर क्यों आज कब्र में

सिर्फ़ खुदी को गाङा है.

खुद ही खुद से हारा है.



क्रांतिदूत यह खुदा खूब है

जो खुद पत्थर की मूरत है.

मिला दिया जो सबको खुद में

सच्चे मजहब का नारा है.

खुद ही खुद से हारा है.

8 comments:

Urmi said...

कई खुदों ने खुद से मिलकर
कहा साथ निवाहेंगे वे.
लेकिन फ़िर क्यों आज कब्र में
सिर्फ़ खुदी को गाङा है.
खुद ही खुद से हारा है...
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! शानदार रचना ! एक नए अंदाज़ के साथ अनुपम प्रस्तुती!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

गहन बात .. इंसान अक्सर खुद से ही हारता या जीतता है ..

ASHOK BAJAJ said...

अच्छी कविता , भविष्य में भी खुद लिखने का प्रयास करते रहिये , लेखनी के क्षेत्र में आपका भविष्य उज्जवल है ,शुभकामनाएं .

संजय भास्‍कर said...

Very thoughtful! And very true.. nice post!

ZEAL said...

खुद ने खुदको किया पराजित

खुद ही खुद से हारा है.

खुद ने साथ दिया खुदको

खुद ने ही खुदको मारा है..

अक्सर हम खुद से ही हार जाते हैं ! बहुत सही लिखा है आपने !

.

vijai Rajbali Mathur said...

स्वाधीनता दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।

Urmi said...

आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

drsatyajitsahu.blogspot.in said...

nice one..........