Monday, June 20, 2011

मानसून



एक अरसा गया कल वो आयी थी घर

वह छिटकती रही प्रेम के पात पर,

मैं हंसा जा रहा , वो बरसती रही.

मैं पिया जा रहा , वो तरसती रही.



एक मौसम वो थी खूब तरसा था मैं

प्रेम बूंदें बिना कितना झुलसा था मैं.

सोचा , बेवफ़ा अब नहीं आयेगी.

ये सूखी जमीं उसको क्यों भायेगी?

रात भर जिस्म से वह फ़िसलती रही.

मैं जमा जा रहा वह पिघलती रही.



पहले चांद को ढक अंधेरा किया

बन बिजली गजब वो बखेरा किया.

सोचकर रुक गयी वो मेरी चाहतें.

मैं था सोया हुआ दे गयी आहटें.

छम-छम बूंद सी वो छमकती रही.

प्यारी - पाजेब सी वो छनकती रही.

11 comments:

shikha varshney said...

सोचा , बेवफ़ा अब नहीं आयेगी.

ये सूखी जमीं उसको क्यों भायेगी?

रात भर जिस्म से वह फ़िसलती रही.

मैं जमा जा रहा वह पिघलती रही

बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ.

Vivek Jain said...

बहुत ही सुंदर रचना,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

दिगम्बर नासवा said...

बेहतरीन अरविन्द जी ... दिल के जज्बात लिख दिए ..

संजय भास्‍कर said...

सोचकर रुक गयी वो मेरी चाहतें.

मैं था सोया हुआ दे गयी आहटें.

छम-छम बूंद सी वो छमकती रही.

प्यारी - पाजेब सी वो छनकती रही.

.....हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

संजय भास्‍कर said...

कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 20 दिनों से ब्लॉग से दूर था
इसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !

ZEAL said...

Monday, June 20, 2011
मानसून


एक अरसा गया कल वो आयी थी घर

वह छिटकती रही प्रेम के पात पर,

मैं हंसा जा रहा , वो बरसती रही.

मैं पिया जा रहा , वो तरसती रही.

Lovely lines !!!!

.

Patali-The-Village said...

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

Urmi said...

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बेहतरीन प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/

Dr.J.P.Tiwari said...

सोचा , बेवफ़ा अब नहीं आयेगी.

ये सूखी जमीं उसको क्यों भायेगी?

रात भर जिस्म से वह फ़िसलती रही.

मैं जमा जा रहा वह पिघलती रही

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना बधाई के साथ शुभकामनायें ।

अनामिका की सदायें ...... said...

khaabo ko asliyat ka khoosurat jama pehnaya hai.

शिखा कौशिक said...

अरविन्द जी बहुत खूबसूरत रचना- बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के बधाई -शुभकामनायें ।