एक अरसा गया कल वो आयी थी घर
वह छिटकती रही प्रेम के पात पर,
मैं हंसा जा रहा , वो बरसती रही.
मैं पिया जा रहा , वो तरसती रही.
एक मौसम वो थी खूब तरसा था मैं
प्रेम बूंदें बिना कितना झुलसा था मैं.
सोचा , बेवफ़ा अब नहीं आयेगी.
ये सूखी जमीं उसको क्यों भायेगी?
रात भर जिस्म से वह फ़िसलती रही.
मैं जमा जा रहा वह पिघलती रही.
पहले चांद को ढक अंधेरा किया
बन बिजली गजब वो बखेरा किया.
सोचकर रुक गयी वो मेरी चाहतें.
मैं था सोया हुआ दे गयी आहटें.
छम-छम बूंद सी वो छमकती रही.
प्यारी - पाजेब सी वो छनकती रही.
11 comments:
सोचा , बेवफ़ा अब नहीं आयेगी.
ये सूखी जमीं उसको क्यों भायेगी?
रात भर जिस्म से वह फ़िसलती रही.
मैं जमा जा रहा वह पिघलती रही
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ.
बहुत ही सुंदर रचना,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बेहतरीन अरविन्द जी ... दिल के जज्बात लिख दिए ..
सोचकर रुक गयी वो मेरी चाहतें.
मैं था सोया हुआ दे गयी आहटें.
छम-छम बूंद सी वो छमकती रही.
प्यारी - पाजेब सी वो छनकती रही.
.....हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 20 दिनों से ब्लॉग से दूर था
इसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !
Monday, June 20, 2011
मानसून
एक अरसा गया कल वो आयी थी घर
वह छिटकती रही प्रेम के पात पर,
मैं हंसा जा रहा , वो बरसती रही.
मैं पिया जा रहा , वो तरसती रही.
Lovely lines !!!!
.
बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बेहतरीन प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
सोचा , बेवफ़ा अब नहीं आयेगी.
ये सूखी जमीं उसको क्यों भायेगी?
रात भर जिस्म से वह फ़िसलती रही.
मैं जमा जा रहा वह पिघलती रही
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना बधाई के साथ शुभकामनायें ।
khaabo ko asliyat ka khoosurat jama pehnaya hai.
अरविन्द जी बहुत खूबसूरत रचना- बेहतरीन अभिव्यक्ति के बधाई -शुभकामनायें ।
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