Wednesday, October 19, 2011

कसौटी



पाप निकलता ही है.

पुण्य बचता ही है.

धर्म बहता ही है.

कर्म करता ही है.

गुण चमकता ही है.

बुराई छलकता ही है.

देखो कसता कसौटी पर

काल अटकता नहीं है.

Wednesday, October 12, 2011

मेरी कविता -2

सुबह ओंस की बूंदों से ,सबसे पहले मिलती है

सुनहली किरणों मे तो वह फ़ूलों सी खिलती है.

सूरज के संग आसमान में चढती है मेरी कविता

नये दिवस की नई कहानी गढती है मेरी कविता



रोज गगन में छू लेती है ऊंचाई की नयी बुलन्दी

जब भी होती है दोपहर में रोशनी से जुगलबन्दी

पूरी ताकत मेहनतकश में भरती है मेरी कविता

सूरज की गर्मीं से भी कब डरती है मेरी कविता.


न ही गिर जाने का दुख नहीं ढल जाने का गम

कर देती थकान वह पल भर में ही कितना कम

सांझ के अंधियारे में दीप सजाती है मेरी कविता

मुरझाये चेहरों पर संगीत बजाती है मेरी कविता.