Sunday, November 15, 2009

अभिव्यक्ति

उनकी हल्की बातें
उडान भरती है,
हवाई पत्तों की तरह.
तेज हवा के झोकों से
दोस्ती कर
चूम लेती है,
महलों की ऊंची दीवारों को.
टकराकर चिपक जाती है,
गगनचुंबी स्तंभों से.
लांघ जाती है,
मदमस्त चौडी नदियों को.
जमीन पर भी
दौडती है,
तेज रफ़्तार काफ़िलों के साथ.

लेकिन,
हमारी बातों मे वजन होता है.
डूब जाती है,
पत्थरों की तरह
किसी गहरे तालाब मे फ़ेंकने पर.
अब वह जमीन का हिस्सा नहीं होता.
वह दिखता नहीं.
वर्षों बाद उसमे काई लग जाती है.
स्वरुप बदल जाता है.
रंग बदल जाता है.
स्तित्व अर्थ नहीं रखता.
ऎसी अभिव्यक्ति का क्या अर्थ?

2 comments:

निर्मला कपिला said...

वर्षों बाद उसमे काई लग जाती है.
स्वरुप बदल जाता है.
रंग बदल जाता है.
स्तित्व अर्थ नहीं रखता.
ऎसी अभिव्यक्ति का क्या अर्थ?
ऐसी अभिव्यक्ति को सण्वेदनशील व्यक्ति ही जान सकता हओ मगर संवेदनायें बची ही कहाँ हैं । बहुर सुन्दर । आशीर्वाद्

मितान said...

छत्‍तीसगढ ब्‍लागर्स चौपाल में आपका स्‍वागत है.