Tuesday, January 31, 2012

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.


कह दो दिल से कैसे मानू

कि मन में तेरे गिले नहीं हैं.

हम साथ साथ भले बैठे हों

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.



अब भी दबे हैं स्वर भावों के

छलक रहे हैं दर्द घावों के.

होठों पर दिखते हंसी नदारद

खुशियों के फ़ूल खिले नहीं हैं.

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.



उद्घोष ही न हो विजय की

जीत का फ़िर अर्थ क्या है.?

भूल जायें अपनी शहादत

रण का फ़िर सार्थ क्या है?

खिंच गये थे जो दरारें

आज तक भी सिले नहीं हैं.

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.



काल था वह हवा का झोंका

उजङा घर हम सबका अपना

याद है कि आग लगी थी

टूट गया था अपना सपना.

पर मर रही थी जो हर पल

आशाओं के पंख हिले नहीं हैं.

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.

5 comments:

kshama said...

Badee rhidaysparshi rachana hai!

Urmi said...

बेहद ख़ूबसूरत एवं दिल को छू लेने वाली रचना लिखा है आपने! बधाई!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सुंदर रचना, प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी.,
welcome to new post --काव्यान्जलि--हमको भी तडपाओगे....

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
शुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!

संजय भास्‍कर said...

आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!