Thursday, July 5, 2012

राजा और वीर




एक खडा है युद्ध-भूमि पर कुछ भी कब सुनता है.
एक हमारी पेट के खातिर माथा अपनी धुनता है.
रक्ततिलक के शौर्य चमक की अनदेखी कर दूं या
स्वर्ण मुकुट की आभा को शीष झुका सम्मान करूं.
मैं कवि किसका गुणगान करूं, मैं कवि किसका गुणगान करूं,


एक प्रचंड शक्ति सूर्य है , निकट जला देता है.
एक देता है पर जानें क्यों भाव बहुत लेता है.
अटल पराजय है फ़िर भी बादल सा गरजूं मैं
या होकर छोटा राजा का खुलकर अपमान करूं.
मैं कवि किसका गुणगान करूं, मैं कवि किसका गुणगान करूं,

शरहद पर लडनेवालों का क्या गीत कोई गाया है.
पर किस राजा को अपनी निंदा आजतलक भाया है.
वीरों के सम्मुख जाकर कायरता का माफ़ी मांगूं या
खुला नहीं जो कभी खजाना उसपर मैं अभिमान करूं.
मैं कवि किसका गुणगान करूं, मैं कवि किसका गुणगान करूं,

Tuesday, January 31, 2012

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.


कह दो दिल से कैसे मानू

कि मन में तेरे गिले नहीं हैं.

हम साथ साथ भले बैठे हों

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.



अब भी दबे हैं स्वर भावों के

छलक रहे हैं दर्द घावों के.

होठों पर दिखते हंसी नदारद

खुशियों के फ़ूल खिले नहीं हैं.

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.



उद्घोष ही न हो विजय की

जीत का फ़िर अर्थ क्या है.?

भूल जायें अपनी शहादत

रण का फ़िर सार्थ क्या है?

खिंच गये थे जो दरारें

आज तक भी सिले नहीं हैं.

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.



काल था वह हवा का झोंका

उजङा घर हम सबका अपना

याद है कि आग लगी थी

टूट गया था अपना सपना.

पर मर रही थी जो हर पल

आशाओं के पंख हिले नहीं हैं.

दिल अभी भी मिले नहीं हैं.